2017-08-28

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Email Filter: आजकल के डिजिटल मार्केटिंग युग में हमें चाहे-अनचाहे सैकड़ों अवांछित ईमेल प्राप्त होते रहते हैं। इन्हीं Spam Mails के कारण हमारा Inbox भर जाता है और कभी-कभी हम अत्यंत महत्वपूर्ण और जरूरी ईमेल समय पर नहीं खोज पाते। कितना अच्छा हो यदि हमारे पास आने वाले सभी ईमेल जरूरी, गैर-जरूरी, स्पैम या हमारे द्वारा बनाई गई किसी अन्य कैटेगरी आदि में स्वतः ही वर्गीकृत हो जांए और सीधे इनबॉक्स में न आकर संबंधित फोल्डर में ही जांए। इस वर्गीकरण या Email Filtration से हमारा मेलबॉक्स तो व्यवस्थित रहेगा ही साथ ही महत्वपूर्ण ईमेल संदेशों को खोजने में समय और श्रम की भी बचत होगी।
जीमेल में लेबल और फिल्टर टैब
हालांकि Gmail ने अपने इनबॉक्स को Primary, Social, Promotions, Updates तथा Forums आदि श्रेणियों में विभाजित करने की सुविधा पहले ही उपलब्ध करा दी है। जीमेल आने वाले हर ईमेल संदेश की पहचान करके उसे संबंधित श्रेणी में विभाजित कर देता है। आप नीचे बताए गए तरीके से इस फीचर को चालू कर सकते हैं:-


Step-1:
दाहिने तरफ ऊपर कोने में अपने लॉगिन विवरण के नीचे Setting पर क्लिक करें।
जीमेल में फिल्टर कैसे लगाएं

Step-2:
Step-1 के बाद खुलने वाली विंडो में चित्र के अनुसार इनबॉक्स पर क्लिक करें और उसके बाद नीचे दिए गए विकल्पों (Options) के चेकबॉक्स पर टिक करके सलेक्ट कर लें।
जीमेल में फिल्टर कैसे लगाएं

Step-3:
पेज को नीचे स्क्रॉल करें और Save कर दें। अब अपने Gmail का Inbox खोल कर देखिए यह Primary, Social, Promotions, Updates आदि भागों (Tabs) में विभाजित होकर नीचे दिए गए चित्र के अनुसार दिखाई देगा। जीमेल अब हर संदेश की पहचान करके उसे संबंधित श्रेणी में स्वतः ही विभाजित कर देगा।
जीमेल में फिल्टर कैसे लगाएं

इसके अलावा भी यदि आपको अन्य फिल्टर लगाने हों जैसे, Office, Boss, Job या किसी व्यक्ति विशेष अथवा Email Address से आने वाले संदेश अपने आप ही संबंधित फोल्डर में चले जांए तो आप नीचे दिए गए दिशा-निर्देशों और बताई गई प्रक्रिया द्वारा आसानी से जीमेल में फिल्टर बना सकते हैं:-

Step-A:
  • पहले की भांति दाहिने तरफ ऊपर कोने में अपने लॉगिन विवरण के नीचे Setting पर क्लिक करें।
  • अब नीचे चित्र में बताए अनुसार Label पर क्लिक करें और नीचे स्क्रॉल करके Create Label पर क्लिक करें तथा खुलने वाली विंडो में वांछित सूचनाए अर्थात Label का नाम जैसे Office, Job आदि भरें। Create पर क्लिक करते ही आपका Label बन जाएगा। 
  • अब आप इस Label से अपने ईमेल संदेश लिंक करने के लिए तैयार हैं।


Step-B:
  • Label बना लेने के बाद आपको संबंधित Label के लिए Filter बनाना होगा। फिल्टर बनाने के लिए Filter and Blocked Addresses पर क्लिक करें।
  • अब Create a new filter पर क्लिक करें। नीचे दिए गए चित्र के अनुसार विंडो खुलेगी, इसमें आपको बड़े ध्यान से जानकारी भरनी है। जैसे किस Email Address से आने वाले मेल, किस विषय या किस शब्द के लिए के लिए आप फिल्टर बनाना चाहते हैं। 
  • सभी सूचनाएं भरने के बाद Create Filter with this Search >> पर क्लिक करें।

Step-C:
  • स्टेप-B के बाद आपको नीचे दिए गए चित्र के अनुसार विंडो दिखाई देगी। यहां आपको Apply the Label पर क्लिक करना होगा। 
  • इसके बाद Choose Label पर क्लिक करके स्टेप-A में बनाई गई Label का चयन करें।
  • अब Create Filter पर क्लिक करते ही आपका फिल्टर तैयार है।


अब जब भी आप अपना Gmail खोलेंगे तो आपको बांई तरफ पैनल में Inbox, Sent Mail आदि के नीचे आपके द्वारा बनाए गए फिल्टर से संबंधित Label का नाम भी दिखाई देगा। इस पर क्लिक करके आप इससे संबंधित ईमेल संदेश देख सकते हैं। इस तरह आपका मेलबॉक्स तो व्यवस्थित रहेगा ही साथ ही समय और ऊर्जा की भी बचत होगी।

उम्मीद है आपको ये जानकारी अच्छी लगी होगी। कृपया अपने कमेंट्स के माध्यम से हमें अवगत कराएं और इस लेख को अधिक से अधिक Share भी करें।

2017-08-25

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नोबल शांति पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी देश भर में बाल तस्करी और बाल यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाने तथा इस संबंध में एक सशक्त लड़ाई व जागरूकता का प्रसार करने के लिए एक ऐतिहासिक भारत यात्रा की शुरूआत कर रहे हैं। यह यात्रा 'सुरक्षित बचपन-सुरक्षित भारत के प्रति उनके विश्वास का प्रतीक है। 35 दिनों तक चलने वाली यह यात्रा 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से होकर गुजरेगी, जिसमें 1500 किलोमीटर का सफर तय किया जाएगा। दक्षिण में यात्रा की शुरूआत कन्याकुमारी से होगी और इसमें पूरे पश्चिम भारत को भी कवर किया जाएगा। इसी तरह देश के पूर्वी हिस्से में यात्रा की शुरूआत गुवाहाटी से होगी, जबकि उत्तर भारत में श्रीनगर से इसकी शुरूआत होगी। यात्रा का समापन 15 अक्टूबर को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में होगा। 
कैलाश सत्यार्थी की भारत यात्रा
कैलाश सत्यार्थी पिछले 36 वर्षों से दुनिया भर में बच्चों की आजादी, सुरक्षा और संरक्षा के लिए अभियान चला रहे हैं। उन्होंने 1998 में ऐतिहासिक ग्लोबल मार्च अगेंस्टग चाइल्ड लेबर की अगुआई की थी, जिससे प्रेरित होकर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने बाल मजदूरी की सबसे खराब स्थिति के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन पारित किया। इसके साथ ही 2001 में शिक्षा यात्रा का नेतृत्व किया, जिसके बाद भारत के संविधान में शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार के तौर पर शामिल किया गया। प्रेरणादायी वैचारिक नेता के तौर पर उन्होंने हमारे देश की सामाजिक और राजनीतिक नीतियों को प्रभावित करने में उत्प्रेरक भूमिका निभाई है। बच्चों के अधिकारों के लिए उनके अनथक प्रयासों और संघर्ष के लिए उन्हें वर्ष 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1893 में शिकागो में महान नेता स्वामी विवेकानंद के भाषण की सालगिरह की याद में इस यात्रा को 11 सितंबर को कन्याकुमारी के विवेकानंद मेमोरियल से रवाना किया जाएगा।


पीड़ित बच्चों  के माता-पिता के साथ भारत यात्रा की घोषणा करते हुए श्री कैलाश सत्यार्थी ने कहा, “आज मैं बाल यौन शोषण और तस्करी के खिलाफ युद्ध का ऐलान करता हूं। आज मैं भारत यात्रा की घोषणा कर रहा हूं, जो कि बच्चों के लिए भारत को फिर से सुरक्षित बनाने के लिए इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन होगा। मैं यह स्वीकार नहीं कर सकता कि हमारे बच्चों की बेगुनाही, मुस्क़राहट और आजादी छिनती रहे या उनका बलात्कार किया जाता रहे। यह साधारण अपराध नहीं है। यह एक नैतिक महामारी है जो हमारे देश को सता रही है।

पिछले चार दशकों के दौरान बच्चों की सुरक्षा के लिए कुछ सबसे बड़े नागरिक आंदोलन के शिल्पकार रहे श्री सत्यार्थी का आजीवन मिशन, बच्चों के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा को समाप्त करना है। श्री सत्यातर्थी और उनका फाउंडेशन कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन्स फाउंडेशन सितंबर में इस यात्रा को शुरू करने के लिए कई महीनों से जमीन तैयार कर रहे हैं। इस सिलेसिले में श्री सत्यार्थी ने देश भर में यात्राएं कीं और नागरिकों, धार्मिक नेताओं, कर्मचारियों तथा कॉर्पोरेट्स, सांसदों, सामाजिक संगठनों आदि से मुलाकात की और सभी ने पूरे दिल से भारत यात्रा का समर्थन करने का वचन दिया और इसे हमारे देश के लिए एक आवश्यक लड़ाई करार देते हुए इस इस नेक कार्य की दिशा में काम करने की प्रतिबद्धता जताई है।


हाल ही में उन्होंने दिल्ली में सांसदों से मुलाकात कर बाल तस्करी और बाल यौन शोषण के मुद्दे पर जानकारी दी और इस खतरे के प्रति जागरूकता फैलाने में उनका समर्थन मांगा। पिछले महीने उन्होंने बेंगलुरू में LinkedIn के 500 से ज्यादा कर्मचारियों से बात की और LinkedIn जैसे कॉर्पोरेट्स को हमारे देश के भविष्य के लिए मजबूत रुख अपनाने की जरूरत के लिए प्रेरित किया। वह नई दिल्ली में कई धर्मों के प्रमुखों के साथ भी बैठक कर रहे हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इस लड़ाई में देश भर में समाज के सभी वर्गों का साथ मिले। दिल्ली में इस यात्रा से पर्दा उठाया गया जिसमें भारत यात्रा से संबंधित एक वीडियो जारी किया गया, जिसमें देश भर के बच्चों की स्वतंत्रता, सुरक्षा और संरक्षा के लिए एकजुट होने और लड़ने की अपील की गई है। इस अभियान के द्वारा देश के एक करोड़ लोगों तक पहुंचने की उम्मीद है।


भारत यात्रा बच्चों का बलात्कार और बाल यौन शोषण के खिलाफ तीन साल के अभियान की शुरूआत है, जिसका उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना और मामलs दर्ज करने, चिकित्सा स्वास्थ्य और मुआवजा सहित सुनवाई के दौरान पीड़ितों और गवाहों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करना तथा बाल यौन शोषण के दोषियों को समयबद्ध सजा दिलाने के मामलों में तेजी लाने के लिए संस्थाकगत प्रतिक्रिया को सुदृढ़ बनाना है।

इस लॉन्च में तस्करी और दुर्व्यवहार के शिकार बच्चों के परिवारों को भी दिखाया गया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि कुछ लोगों के गलत व्यवहार की वजह से उन्हें किस तरह भावनात्मक और शारीरिक आघात का सामना करना पड़ा। परिवारों ने भी इस अभियान में समर्थन का वचन दिया और उम्मीद जताई कि यह अभियान क्रांति लाएगा। बच्चों के शोषण के खिलाफ देश को अपनी लड़ाई जारी रखना समय की अनिवार्य जरूरत बन गई है।

नोट: यह लेख तृतीय पक्ष द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के आधार पर लिखा गया है। हिंदी ई-टूल्स || Hindi e-Tools का इससे कोई सीधा संबंध नहीं है।

2017-08-24

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टेलीकॉम मार्केट में आने के साथ ही Reliance Jio ने धूम मचा दी है। पहले Jio SIM फिर Free DATA और एक बार फिर Jio Mobile Phone के साथ मार्केट में तहलका मचाने को तैयार है। आज यानी 24 अगस्त 2017 शाम 5:30 बजे से जियो फोन की Pre booking शुरू हो चुकी है। 15 अगस्त इस से फोन की बीटा टेस्टिंग हो रही थी और अब Reliance Jio ने इसे प्री-बुकिंग के जरिए आम लोगों के लिए उपलब्ध कराना शुरू कर दिया है। रिलायंस का लक्ष्य एक सप्ताह में 40 से 50 लाख जियो फोन बेचने का है। तो आइए रिलायंस जियो के 4जी फीचर फोन और इसकी बुकिंग के बारे में विस्तार से जानते हैं।

Reliance Jio 4G Feature Phone

प्री-बुकिंग (Pre Booking):
Jio Phone की की बुकिंग 2 तरीके से होगी अर्थात ऑनलाइन और ऑफलाइन। खास बात ये है कि देशभर में एक व्यक्ति सिर्फ एक यूनिट ही बुक कर सकता है। अगर आप एक से फोन यूनिट बुक करना चाहते हैं तो आपको अपने संस्थान का पैन या जीएसटीएन नंबर देना होगा।


ऑनलाइन माध्यम से बुकिंग (Online Bokking) -
सबसे पहले ऑनलाइन बुकिंग की बात करते हैं। अगर आप ऑनलाइन बुक करना चाहते हैं तो रिलायंस 4जी फीचर फोन की ऑनलाइन बुकिंग रिलायंस जियो के MyJio App अथवा www.jio.com वेबसाइट पर की जा सकती है। जियोफोन की ऑनलाइन बुकिंग के लिए ऐप का एक्सेस ना रखने वालों को नजदीकी अधिकृत ऑफलाइन जियो रिटेलर के पास जाकर अपनी किस्मत आजमानी होगी।

ऑफलाइन यानी जियो रिटेलर/ दुकानों के माध्यम से बुकिंग (Offline Booking) -
अगर ऑफलाइन बुकिंग की बात करें तो देश भर में करीब 700 शहरों में रिलायंस डिजिटल के लगभग 1,996 आउटलेट्स हैं जबकि रिलायंस जियो के 1,072 सेंटर भी बनाए गए हैं। यहां सभी जगह जियो के फ्री 4जी फीचर फोन की बुकिंग की जा सकती है। अधिकृत दुकानों से फोन बुक करने के लिए आपको 500 रुपये देने होंगे और डिलीवरी के समय आपसे 1,000 रुपये और लिए जाएंगे। इसके अलावा आप फोन की प्री-बुकिंग जियो स्टोर या रिलायंस डिजिटल स्टोर से भी कर सकते हैं। अच्छी बात यह है कि प्री-बुकिंग के दौरान यहां आपको कोई पैसा नहीं देना होगा।

जरूरी दस्तावेज (Essential Documents):
जियो फोन की ऑफलाइन प्री बुकिंग अर्थात दुकान से फोन बुक करने के लिए आपको अपने आधार कार्ड की फोटो कॉपी और एक फोटो देने होंगे। उसके बाद फोन बुक हो जाएगा और आपको एक टोकन मिल जाएगा। फोन लेते समय आपको टोकन देना होगा और उसी समय आपको फोन की सिक्योरिटी राशि देनी होगी जिसे आप 3 साल बाद फोन वापस करके ले सकते हैं।

ध्यान दें कि एक आधार कार्ड पर केवल एक ही फोन लिया जा सकता है। यह फोन पहले आओ पहले पाओ की तर्ज पर दिया जाएगा।

कीमत अथवा सिक्योरिटी डिपॉज़िट (Price or Security Deposit):
रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के चेयरमैन मुकेश अंबानी के मुताबिक, जियो फोन के लिए ग्राहक को कोई कीमत नहीं चुकानी होगी, लेकिन यूज़र को इसके लिए सिक्योरिटी के तौर पर 1,500 रुपये जमा करने होंगे जो तीन साल बाद वापस मिल जाएंगे यानी फोन की प्रभावी कीमत शून्य होगी।


डिलीवरी (Delivery):
जब जियो फोन लॉन्च किया गया था तब बताया गया था कि फोन की डिलीवरी सितंबर माह में होगी, लेकिन किस तारीख से होगी यह तब नहीं बताया गया था। खबरों के अनुसार माना जा रहा है कि अभी बुक करने वाले ग्राहकों को फोन की डिलीवरी 1 सितंबर से लेकर 4 सितंबर के बीच शुरू की जाएगी, हालांकि यह भी हो सकता है कि ज्यादा बुकिंग के कारण फोन की डिलीवरी में देर भी हो जाए। अगर आप जियो 4जी फ़ीचर फोन को अपने हाथों में देखना चाहते हैं, तो बेहतर होगा कि जितनी जल्दी हो सके बुकिंग करा लें।

फीचर (Reliance 4G Feature Phone Specifications):
बात करें Jio Phone के फीचर्स की तो इस फोन में निम्नलिखित सुविधाएं उपलब्ध हैं:-
  • 2.4 इंच QVGA Screen
  • 4 GB इनबिल्ट स्टोरेज
  • 512 एमबी RAM
  • न्यूमेरिक कीपैड
  • 4 नेविगेशन बटन
  • माइक्रोएसडी स्लॉट
  • फोटोग्राफी के लिए 2 मेगापिक्सल का रियर कैमरा
  • सेल्फी के लिए VGA कैमरा
  • टॉर्च लाइट
  • एफएम रेडियो
  • ब्लूटूथ
  • नेविगेशन
इसके अलावा इसमें जियो टीवी और जियो सिनेमा जैसे ऐप पहले से इंस्टॉल होंगे जिनके माध्यम से आप 6,000 से ज्यादा फिल्में तथा 60,000 से ज्यादा म्यूजिक वीडियो का आनंद उठा सकते हैं। जियो म्यूजिक पर 20 भाषाओं में 1 करोड़ से ज्यादा गानों के उपलब्ध होने का दावा किया है।

सबसे खास बात है यह फोन 22 भारतीय भाषाओं जैसे आसामी, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलूगू और उर्दू आदि को सपोर्ट करेगा।


Reliance Jio 4G Feature Phone में 0 बटन दबाकर इंटरनेट का इस्तेमाल किया जा सकता है। इस फोन में यूट्यूब वीडियो, म्यूजिक डाउनलोड, न्यूज अपडेट, एजुकेशन मैटिरियल, फेसबुक, मैट्रिमनियल, राशिफल, वॉलपेपर डाउनलोड, जॉब सर्च, मौसम आदि की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। जियो फोन को एक टीवी-केबल एक्सेसरी के जरिए किसी भी तरह के टीवी से कनेक्ट किया जा सकेगा। यानी फोन के कंटेट को आप आसानी से बड़े स्क्रीन पर देख सकते हैं।

कंपनी ने आने वाले सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए एनएफसी सपोर्ट और यूपीआई के जरिए टैप-एंड-पे पेमेंट और क्रेडिट व डेबिट कार्ड को लिंक कर पाएंगे।

उम्मीद है कि ऊपर दी गई जानकारी से आपको जियो फोन और इसकी बुकिंग आदि से जुड़े अपने कई सवालों के जवाब मिल गए होंगे। Jio Phone में एक सिम के लिए ही सपोर्ट होगा। जियो फोन सिर्फ 4G पर काम करने वाला हैंडसेट है। इसमें फोन कॉल वॉयस ओवर एलटीई (VOLTE) तकनीक के ज़रिए होते हैं। आपको पता ही होगा कि अभी भारत में रिलायंस जियो ही अकेली ऐसी कंपनी है जो 4जी वीओएलटीई नेटवर्क देती है। इसका मतलब है कि सिर्फ इस कंपनी के सिम कार्ड ही फोन पर काम करेंगे, यानी जियो फोन पर एयरटेल, वोडाफोन, आइडिया और बीएसएनएल के सिम इस्तेमाल करने के बारे में भूल जाइए। वैसे, एयरटेल ने जानकारी दी है कि वह जल्द ही वॉयस ओवर एलटीई सेवा की शुरुआत करेगी। लेकिन जियो फोन में सिम लॉक होना निश्चित माना जा रहा है।

2017-08-21

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मध्य प्रदेश के शहर इंदौर में आजकल कैफे भड़ास की चर्चा खूब चल रही है। भड़ास भारत का ऐसा पहला कैफे है जहां आप अपने तरीके से अपने गुस्से उससे जुड़ी निराशा, जलन व चिड़चिड़ाहट इत्यादि नकारात्मक भावों को व्यक्त कर सकते हैं अर्थात अपनी भड़ास खुलकर निकाल सकते हैं।। वह भी पूरी सुरक्षा व गोपनीयता के साथ ताकि आपके व्यावसायिक एवं पारिवारिक रिश्तों पर कोई असर न हो।

Bhadas Cafe Indore

प्रत्येक शहर की अपनी एक पहचान होती है। यह पहचान उसकी कुछ विशेषताओं जैसे एतिहासिक स्मारक, खान-पान, मार्केट या अन्य कुछ खासियत से बनती है। इंदौर को मालवा का गौरव और मिनी मुंबई कहा जाता है। किंतु इस शहर का दिल आज भी राजवाड़ा में ही धड़कता है। राजवाड़ा सिर्फ होल्कर कालीन महल ही नहीं है यहां के चौक में शहर के बाशिदों की जान बसती है। जश्न मनाना हो, विरोध प्रकट करना हो या दुःख में हों, सभी अवसरों पर राजवाड़ा पूरे शबाब पर होता है, फिर चाहे आधी रात का भी समय क्यों न हो तब भी यहों का उत्साह कम नहीं होता है। अब भड़ास कैफे ने राजवाड़ा के जोश और उत्साह को और बढ़ा दिया है।
आधुनिक इंदौर में भड़ास कैफे शहर की पहचान बन गया है। यह भारत का ऐसा पहला कैफे है जहां आपके गुस्से को व्यक्त करने के लिए विशेष सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। यहां पर आप न केवल तोड़फोड़ करके, चिल्लाकर अथवा रोकर अपना गुस्सा व्यक्त कर सकते हैं बल्कि गुस्से को शांतिपूर्ण तरीके से अन्य सकारात्मक दिशाओं में मोड़ने के लिए उपलब्ध विशेष सुविधा के कारण इसे विश्व का अपनी तरह का पहला कैफे भी माना जा रहा है।
भड़ास में सुरक्षा व्यवस्था के साथ आप एकदम अकेले में ऑफिस, परिवार, दोस्त या प्रेमी के प्रति अपने गुस्से को व्यक्त करने के लिए उनसे संबंधित सामान को पूरी ताकत से तोड़फोड़ सकते हैं। रोने, चिल्लाने व अपशब्दों का प्रयोग भी करें तो भी कोई दूसरा नहीं सुनेगा। इस तरह आपके मन की भड़ास निकल जाएगी। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि गुस्सा सबसे अधिक एनर्जी वाला नेगेटिव इमोशन है और इसे सही दिशा में मोड़ दिया जाए तो रचनात्मक एनर्जी बन सकती है। भड़ास में आप संगीत के वाद्य यंत्र बजाकर पेन्टिंग करके, बचपन के खेलों से या अन्य पसंदीदा काम करके अपनी एनर्जी को सकारात्मक दिशा में मोड़ दे सकते हैं। यकीन मानिए इतनी सारी खूबियों के साथ भड़ास आधुनिक इंदौर की पहचान बन गया है, जैसे राजवाड़ा के बिना इंदौर की कल्पना नहीं की जा सकती है वैसे ही आने वाले समय में भड़ास के बिना इंदौर अधूरा लगेगा। आप शहर की इस नई पहचान को स्वयं तो देखिए ही बाहर से आने वाले लोगों को भी इससे रूबरू कराइए।
जब कोई भड़ास पर आता है तो स्वयं ही अपने गुस्से को बाहर निकालने के लिए तत्पर हो जाता है। अभी तक इंदौर में आने वाली कई बड़ी हस्तियों ने भड़ास का अवलोकन किया है और इसे इंदौर की नई पहचान बताया है।

इस कैफे के बारे में और अधिक जानकारी के लिए आप अतुल मलिकराम से फोन नंबर 9755020247 पर संपर्क कर सकते हैं। 

नोट: यह लेख तृतीय पक्ष द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के आधार पर लिखा गया है। हिंदी ई-टूल्स || Hindi e-Tools का इससे कोई सीधा संबंध नहीं है।

2017-04-06

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हिंदी साहित्य के काल विभाजन और नामकरण में आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा तत्कालीन युगीन प्रवृत्तियों को सर्वाधिक प्राथमिकता दी गई है। विभिन्न प्रवृत्तियों की प्रमुखता के आधार पर ही उन्होने साहित्य के अलग-अलग कालखण्डों का नामकरण किया है। इसी मापदंड को अपनाते हुए हिंदी साहित्य के उत्तर मध्य काल अर्थात 1700-1900 वि. के कालखण्ड में रीति तत्व की प्रधानता होने के कारण शुक्ल जी ने इस कालखण्ड को ‘रीति काल’ नाम दिया।

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इस समय अवधि में अधिकांश कवियों द्वारा काव्यांगों के लक्षण एवं उदाहरण देने वाले ग्रंथों की रचना की गई। अनेक हिंदी कवियों द्वारा आचार्यत्व की शैली अपनाते हुए लक्षण ग्रंथों की परिपाटी पर अलंकार, रस, नायिका भेद आदि काव्यांगों का विस्तृत विवेचन किया गया। रीति की यह धारणा इतनी बलवती थी कि कवियों /आचार्यों के मध्य इस बात पर भी विवाद होता थी कि अमुक पंक्ति में कौन सा अलंकार, रस, शब्दशक्ति या ध्वनि है। इन्ही सब तत्वों या प्रवृत्तियों को ध्यान में रखते हुए उत्तर मध्य काल का नामकरण ‘रीतिकाल’ के रूप में किया गया।


‘रीति’ शब्द से अभिप्रायः-

  • भारतीय काव्य शास्त्र में प्रचलित काव्य के छ: संप्रदायों में से एक प्रमुख संप्रदाय है, जिसके प्रवर्तक ‘आचार्य वामन’ हैं।
  • आचार्य वामन ने ‘विशिष्टपद रचना रीति:’ कहते हुए ‘विशेष पद रचना’ को रीति माना है।
  • उन्होने ‘रीति’ शब्द को व्यापक रूप में अर्थ ग्रहण करते हुए काव्य रचना संबंधी समस्त नियमों और सिद्धांतों, रस, अलंकार, ध्वनि आदि विभिन्न तत्वों को ग्रहण करते हुए इसे काव्य की आत्मा घोषित किया है।
  • संभवतः रीति कालीन आचार्यों द्वारा रीति का यही व्या‍पक रूप ग्रहण किया गया और उन्होने इसी आधार पर विभिन्न काव्यांगों का निरूपण करने वाले काव्य ग्रंथों की रचना की।
  • अत: हिंदी में ‘रीति’ शब्द का संस्कृत अर्थ न लेते हुए यहां ‘काव्यांग निरूपण’ करने वाले लक्षण ग्रंथों से ही लिया गया है।

‘रीतिकाल’ नाम पर आपत्तिः-

हिंदी साहित्य के अनेक आलोचक और इतिहासकार शुक्ल जी के नामकरण से पूर्णतः सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार ‘रीति’ शब्द उत्तर मध्य काल की सभी प्रवृत्तियों अथवा विशेषताओं को व्यक्त करने में समर्थ नहीं है। विभिन्न विद्वानों द्वारा साहित्य के इस कालखण्ड को शृंगार काल, कला काल, अलंकृत काल तथा अंलकार काल आदि नाम देते हुए अपने मत व्यक्त किए गए और इनके समर्थन में अनेक तर्क प्रस्तुत दिए गए।

देखा जाए तो कला काल, अलंकृत काल व अलंकार काल में कोई विशेष भिन्नता नहीं हैं तथा ‘रीति’ से भी अधिक अंतर नहीं हैं। ‘शृंगार काल’ नाम अवश्य ही ‘रीति’ से कुछ पार्थक्य सूचित करता है। कुछ विद्वानों को रीति काल में घनानंद, ठाकुर, बोधा आदि द्वारा रची गयी शृंगारिक रचनाओं को रीतिमुक्त होने के कारण रीतिकाल में लाने से हिचक है। शृंगार काल नाम देने से यह हिचक स्वत: ही समाप्त हो जाती है।

आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र तथा डा. नागेन्द्र ने ‘रीति’ शब्द को संकुचित अर्थ में ग्रहण करते हुए इसे ‘काव्य रीति’ का संक्षिप्त रूप ही माना है और इसकी अनुपयुक्तता सिद्ध करने का प्रयास किया है। आचार्य मिश्र का तर्क - ‘विचार करने पर रीति ग्रंथ प्रणेता अधिकतर आचार्य सिद्ध नहीं होते। इन्होंने रीति का पल्ला सहारे के लिए पकड़ा, कहना ये चाहते थे ‘शृंगार’ ही।

समग्रता से विश्लेषण किया जाए तो मिश्र जी द्वारा दिया गया यह तर्क पूर्णता के द्योतक नहीं हैं क्योंकि रीतिकाल में वीर रस के प्रसिद्ध कवियों और नीति काव्य के प्रणेताओं में शृंगार लेशमात्र भी नहीं हैं। सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर वीर रस, नीति अथवा स्वछंद काव्य रचयिताओं की काव्य सर्जना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ‘रीति’ से अवश्य प्रभावित रही हैं।

रीतिकाल के अन्य नामः-

अनेक विद्वान शुक्ल जी द्वारा दिए गए इस नाम से असहमत हैं और उन्होने रीतिकाल के अन्य नाम सुझाए हैं। कुछ विद्वानों ने दिए गए प्रमुख नाम निम्नलिखित हैंः-
  1. मिश्रबंधु : अलंकृत काल
  2. आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र : शृंगार काल
  3. आचार्य चतुरसेन शास्त्री : अलंकार काल
  4. रमाशंकर शुक्ल ‘रसाल’ : कला काल
अनेक विद्वान रीति नाम से ही सहमत हैं, यद्यपि शृंगार काल में भी विशेष अनौचित्य नहीं हैं। फिर भी कई कारणों से रीतिकाल नाम ही विशेष प्रचलित और सर्वमामन्य हो सका। अतः निष्कर्ष रूप में देखा जाए तो ‘रीतिकाल’ नाम देना ही अधिक उचित‍ व तर्कसंगत प्रतीत होता है और संयोग से शुक्ल जी द्वारा दिया गया यह नाम ही सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रचलित हुआ।

2017-03-15

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Undo send email in Gmail

कभी-कभी जल्दबाजी में हम अचानक गलत ईमेल पते पर ईमेल भेज देते हैं या बिना File Attachment के ही भेज देते हैं। मेल भेजने के तुरंत बाद ही हमें अहसास होता है- ओह..! ये क्या हुआ..? गलत ईमेल चला गया। एसी स्थिति में खीज और पछतावे के अलावा हमारे हाथ में कुछ नहीं रहता। अगर ईमेल संवेदनशील या गोपनीय हो और गलत व्यक्ति के पास चला जाए तो स्थिति और खराब हो जाती है। ऐसे में ज़रा सी चूक या लापरवाही का बड़ा ख़ामियाजा भुगतना पड़ सकता है, कई मामलों में तो बात नौकरी तक पर आ जाती है। तब हम सोचते हैं, काश! ऐसा होता कि समय रहते तुरंत ही हम उस ईमेल को 'unsend' कर पाते..!

कई ईमेल सेवा प्रदाता Send ईमेल को Undo करने का Feature उपलब्ध कराते हैं। आइए, इस लेख में हम सबसे लोकप्रिय Email सेवा प्रदाता GMAIL में उपलब्ध इस सुविधा की जानकारी प्राप्त करें। Gmail में यूजर्स के लिए ऑफिशियली यह सुविधा उपलब्ध है। अपने Gmail Account Setting में आप नीचे बताए गए तरीके के अनुसार इस फीचर को चालू कर सकते हैंः-


STEP-1:
अपने Gmail Account में Login करके दांयी तरफ ऊपर किनारे पर प्रोफाइल पिक्चर के नीचे Setting (⚙) बटन पर क्लिक करें। इसके बाद दिखाई देने वाली ड्रॉप डाउन मेन्यू लिस्ट में से पुनः Setting पर क्लिक करें।
enable undo send mail feature in gmail

STEP-2:
अब दिखाई देने वाली स्क्रीन पर General टैब पर क्लिक करके नीचे स्क्रॉल करें और  'Undo Send' विकल्प देखें। इसके सामने वाले चेक बॉक्स पर क्लिक करके Undo Send फीचर को Enable कर दें और आगे दिए गए Send cancellation period विकल्प में से अपनी सुविधा अनुसार (5- 30) सेकेंड का चयन करें। इसके बाद नीचे स्क्रॉल करके Settings को Save कर दें।

How to enable undo send mail feature in gmail

इस सुविधा को सक्रिय करने के बाद आप जब भी ईमेल भेजेंगे तो आपके ईमेल अंतिम रूप से भेजे जाने से पहले कुछ सेकेंड के लिए Save हो जाएंगे और तुरंत नहीं भेजे जाएंगे। इस दौरान आपकी स्क्रीन पर भेजे गए ईमेल को Undo करने के लिए एक संदेश दिखाई देगा।


STEP-3:
भेजे जाने वाले ईमेल को Undo करने वाला संदेश आपके द्वारा पूर्व में चयनित समय तक प्रदर्शित होगा। इस दौरान यदि आप Undo पर क्लिक कर देंगे तो आपका ईमेल भेजा नहीं जाएगा और वापस ड्राफ्ट में Save हो जाएगा।
undo sent mail in gmail

इस तरह आप जल्दबाजी में भेजे जाने वाले गलत या अवांछित ईमेल को भेजने से बच सकते हैं। निश्चय ही ये कुछ सेकेंड आपके लिए बहुमूल्य साबित हो सकते हैं।

2017-03-11

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लंबाई (Length), तापमान (Temperature), क्षेत्रफल (Area), आयतन (Volume), वजन (Weight) और समय (Time ) आदि से संबंधित छोटी-बड़ी Units को अन्य Units में बदलने के लिए हमें कई बार एक सरल और आसान यूनिट कन्वर्टर की आवश्यकता पड़ती है। उदाहरण के लिए मीटर को किलोमीटर या सेंटीमीटर में बदलना, वर्ग मीटर को वर्ग फुट में बदलना अथवा सेल्सियस तापमान के फारेनहाइट में बदलना आदि। अब आप नीचे दिए गए Unit Converter की मदद से विभिन्न मानक इकाइयों को आपस में बदल सकते हैं।

Unit Converter || इकाई परिवर्तक

From To

कैसे प्रयोग करें ?

  • सबसे पहले Length, Temperature, Area, Volume, Weight या Time में से आवश्यकता अनुसार किसी एक को सलेक्ट कीजिए।
  • अब From: वाले टेक्स्ट-बॉक्स में अपनी संख्या लिखिए और उसके नीचे दी गई सूची में से आवश्यकता अनुसार किसी एक इकाई (UNIT) को सलेक्ट कीजिए।
  • अब To: वाले टेक्स्ट-बॉक्स के नीचे दी गई सूची में से उस इकाई का चयन कीजिए जिसमें आप परिवर्तन करना चाहते हैं। इसके बाद आपको वांछित परिणाम (Result) मिल जाएगा।

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ये भी आजमाए :

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2017-03-07

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विज्ञान और तकनीकी के वर्तमान युग में हिंदी कंप्यूटिंग की दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है। आज से कुछ वर्ष पहले जो चीजें देखने और सुनने में असंभव सी लगती थी, आज बदलते तकनीकी परिवेश में हमारी आँखों के सामने ही हकीक़त में बदल रहीं हैं। तकनीकी का पहिया इतनी तेजी से घूमा है कि भाषाई कंप्यूटिंग के क्षेत्र में एक क्रांति सी आ गई है। आज हर सॉफ्टवेयर कंपनी स्थानीयकरण (localization) की बात कर रही है। अब हर भाषा के लिए अलग–अलग सॉफ्टवेयर निर्माण करने की आवश्यकता नहीं हैं। जितनी सहजता से किसी सॉफ्टवेयर पर अंग्रेजी भाषा में काम किया जा जाता है उतनी ही सरलता और आसानी से अब दुनिया की किसी भी भाषा में काम करना संभव हो गया है। आज से लगभग एक दशक पहले अंग्रेजी के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा में ईमेल भेजना कितना मुश्किल था, आज हम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। किन्तु यूनिकोड जैसी नई एनकोडिंग प्रणाली के आगमन से डिजिटल कंप्यूटर की दुनिया ही बदल गई है और अब हम अपने हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में बिना किसी परिवर्तन के अंग्रेजी की तरह ही हिंदी में भी आसानी से ईमेल भेज सकते हैं।

आइए हिंदी में ईमेल भेजने से संबंधित आरंभिक तकनीकी समस्याओं, सॉफ्टवेयर तथा एनकोडिंग प्रणाली आदि पर कुछ चर्चा करते हैं :-

हिन्दी ईमेल की कुछ पुरानी समस्याएँ :


ईमेल भेजने और प्राप्त करने के लिए प्रमुख रूप से दो तरह के टूल काम आते हैं, एक ईमेल क्लाईंट तथा दूसरा वेब आधारित ईमेल सर्वर। आरंभ में क्लाइंट और सर्वर सॉफ्टवेयर की सभी कोडिंग केवल ASCII (American Standard Code for Information Interchange) प्रणाली पर आधारित थी। 8bit पर आधारित इस प्रणाली में कम्प्यूटर स्क्रीन पर केवल अंग्रेजी भाषा के अक्षरों को ही प्रदर्शित किया जा सकता था। हिन्दी में ईमेल करने के लिए कुछ वर्षों पहले तक हमारे पास एक मात्र विकल्प के रूप में ऑस्की फ़ॉन्ट आधारित सेवाएँ ही थी, जिसमें हम शुषा से लेकर वेबदुनिया तक के विभिन्न फ़ॉन्ट का उपयोग कर हिन्दी में ई-मेल कर पा रहे थे। परंतु इसमें भी बहुत सी समस्याएँ थीं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :
  • ईमेल के हैडर तथा विषय को अँग्रेजी में ही लिखना होता था क्योंकि यह हिन्दी में लिखना संभव नहीं था।
  • जिसको ईमेल किया जा रहा है उसके कंप्यूटर में भी वही फ़ॉन्ट संस्थापित (Installed) होना अनिवार्य होता था, अन्यथा उस ईमेल को पढ़ पाना संभव नहीं था।
  • मूल रूप से अँग्रेजी शब्दों के साथ ही काम करने के कारण हिन्दी शब्दों के आधार पर अपने आवश्यक ईमेल को खोजने तथा सहेज कर रखने में भी समस्याएँ आतीं थीं।
  • इस प्रकार की समस्याएँ आउटलुक एक्सप्रेस तथा वेब आधारित ईमेल सेवा जैसे वेबदुनिया या रेडिफ़ मेल दोनों में ही समान रूप से आती हैं।
  • यदि ऑपरेटिंग सिस्टम यूनीकोड का समर्थन करता है तो आपका ईमेल क्लाइंट तथा ब्राउज़र भी यूनीकोड हिन्दी समर्थन प्राप्त करने वाला होना चाहिए।
Unicode and hindi email

अगला कदम और समस्याओं का समाधान :

ईमेल सेवाएं प्रमुख रूप से दो प्रकार की एनकोडिंग प्रणाली पर आधारित होतीं हैं, एक ASCII और दूसरी यूनिकोड। वर्तमान में प्रचलित अधिकांश ईमेल सेवाएं आरंभ में ASCII एनकोडिंग प्रणाली पर ही आधारित थीं। किंतु, अब समय को साथ बदलाव आया और इन कंपनियों ने यूनीकोड एनकोडिंग प्रणाली को अपनाना शुरू कर दिया। जो ईमेल सॉफ्टवेयर अर्थात क्लाइंट और सर्वर ASCII  प्रणाली पर आधारित हैं उनमें हिन्दी या किसी अन्य भाषा में ईमेल भेजना मुश्किल काम है। किन्तु, जो क्लाइंट और सर्वर यूनिकोड प्रणाली पर आधारित हैं उनमें हिन्दी में सहजता से ईमेल भेजे जा सकते हैं। यूनिकोड वास्तव में दुनिया भर की सभी भाषाओं के प्रत्येक अक्षर के लिए कंप्यूटर में एक सर्वमान्य कोड उपलब्ध कराने की व्यवस्था है। अत: यूनिकोड प्रणाली में हिंदी (देवनागरी) के किसी भी अक्षर को प्रदर्शित करने के लिए जो कोड उपलब्ध कराया गया होगा वह पूरे विश्व में अंग्रेजी (ASCII) की ही तरह मानक और सर्वमान्य होगा।
  • वर्तमान में लगभग सभी प्रमुख कंपनियों यथा; माइक्रोसॉफ्ट, याहू, एप्पल, आईबीएम, गूगल आदि के सभी सॉफ्टवेयर उत्पाद यूनिकोड प्रणाली को समर्थन करने वाले बनाए जा रहे हैं। जिससे अधिकांश समस्याएं स्वतः ही समाप्त हो गई हैं।
  • विंडोज़ 2000 एवं इसके बाद के सभी संस्करणों में तथा वर्ष 2002 के बाद जारी लिनक्स के लगभग सभी संस्करणों में ऑपरेटिंग सिस्टम के स्तर पर ही डिफ़ॉल्ट रूप से हिन्दी यूनीकोड के समर्थन की सुविधा उपलब्ध रहती है। इन सुविधाओं में ईमेल क्लाईंट तथा ब्राउज़र भी शामिल हैं।
  • आजकल जावा आधारित कुछ ऐसे टूल्स भी प्रचलित हैं जिनको चलाने के लिए कंप्यूटर पर किसी प्रकार के यूनीकोड समर्थन की आवश्यकता नहीं है परंतु जावा वर्चुअल मशीन संस्थापित होना आवश्यक है । जी-मेल भी जावा स्क्रिप्ट पर चलता है अर्थात इसके लिए आपके मशीन में जावा संस्थापित होना तो आवश्यक है। इसके साथ आपका ब्राउज़र भी जावा स्क्रिप्ट चलाने के लायक होना चाहिए।
  • चूंकि आमतौर पर आज सभी उपलब्ध नए ब्राउज़र जावा स्क्रिप्ट का समर्थन करते हैं। जावा स्क्रिप्ट पर आधारित होने के कारण जी-मेल के नए संस्करण को अलग से डाउनलोड करने की आवश्यकता नहीं होती है अर्थात जब भी आप जी-मेल का उपयोग करते हैं यह नवीनतम संस्करण ही रहता है।
  • कुछ पुराने सिस्टमों जैसे; विंडोज़ 98 में इंटरनेट एक्सप्लोरर 6 का पूरा पैकेज संस्थापित करने से यूनीकोड हिन्दी के आंशिक उपयोग के लायक बनाया जा सकता है।


वर्तमान में ईमेल सेवा उपलब्ध कराने वाली सभी प्रमुख कंपनियां जैसे ; जी मेल, याहू मेल, रेडिफ़ मेल, हॉट मेल आदि यूनिकोड आधारित एनकोडिंग का प्रयोग कर रही हैं। जिससे अब हिन्दी में ईमेल भेजना कोई समस्या नहीं रही है। बस आपको अपने कंप्यूटर में यूनिकोड सक्रिय करना है और हिन्दी टाइपिंग की के लिए किसी इनपुट प्रणाली (typing method) को सीखना है। हिन्दी टाइपिंग के लिए भारत सरकार ने इनस्क्रिप्ट प्रणाली को आधिकारिक रूप से मानक घोषित किया है। यह आपके कंप्यूटर में पहले से ही मौजूद है। यदि आपको इसमे टाइपिंग नहीं भी आती है तो भी आजकल हिंदी टाइपिंग कोई समस्या नहीं रही है, अब आप फोनेटिक टाइपिंग (अंग्रेजी में टाइप करके हिंदी में लिखना) से भी आसानी से लिख सकते हैं। तकनीकी तो एक कदम और आगे बढ़ चुकी है, अब आप बोलकर (वॉइस टाइपिंग) भी हिंदी में टाइप कर सकते हैं।

मित्रो ! तकनीकी रूप से तो हिंदी ईमेल भेजने से संबंधित सभी समस्याओं का लगभग समाधान हो चुका है। अब बस मानसिक समस्याएँ ही बचीं हैं और इच्छाशक्ति न होने के कारण कुछ बाधाएँ हैं। तो इन मुश्किलों को भी दूर करके आप भी हो जाइए तैयार और भेजिए हिंदी में ईमेल।

2017-03-06


You can interchange Devanagari Hindi, Bengali, Oriya, Punjabi, Gujarati, Kannada, Telugu, Malayalam, Tamil, Sinhala and Tebetan Script here.
एक आसान और बेहतरीन लिपि (Script) परिवर्तक जिसकी मदद से आप विभिन्न भारतीय लिपियों जैसे देवनागरी (हिंदी) , बंगाली, ओडिया, गुरमुखी (पंजाबी), गुजराती, कन्नड़, तेलगू, मलयालम, तमिल , सिंहली और तिब्बती आदि लिपियों को आपस में बदल सकते हैं।

लिपि परिवर्तक || All Indian Script Converter online

स्रोत लिपि || Source Script Select Target Script: ⇒
परिवर्तित लिपि || Output Script:

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कृपया इस लिपि परिवर्तक टूल के बारे में अपनी राय और फीडबैक अवश्य दें जिससे हम इस टूल को भविष्य में आपके लिए और अधिक उपयोगी बना सकें।

2017-01-09

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कई साल पहले अत्यंत प्रिय मेरी मौसी को दिल का दौरा पड़ गया। अचानक उत्पन्न यह परिस्थिति मेरे लिए वज्रपात से कम नहीं थी। मैं बुरी तरह से घबरा गया। क्योंकि मौसी मेरे दिल के सबसे  करीब थी। उनके बगैर जीवन की कल्पना भी मेरे लिए मुश्किल थी। सुखद आश्चर्य के तौर पर कुछ घंटों में ही मौसी खतरे से बाहर आ गई। थोड़े उपचार के बाद वह घर भी लौट आई। मैं फिर जीवन संघर्ष में जुट गया। लेकिन महज एक पखवाड़े के भीतर उन्हें दूसरी बार दिल का दौरा पड़ा । अपने स्वाभाव के विपरीत शुरूआती कुछ घंटे मैं सामान्य बना रहा। मुझे गलतफहमी रही कि वे जिस तरह पहली बार बीमारी के बाद वे जल्द स्वस्थ हो गई थी, इस बार भी ऐसा ही होगा। लेकिन परिदृश्य में होता निरंतर बदलाव और परिजनों की बातचीत से मुझे आभास हो गया कि अपनी सबसे प्रिय मौसी को अलविदा कहने  का समय आ गया है। इसके बाद मेरा गला रूंध गया। मुंह से शब्द निकलने बंद हो गए। लगातार दो दिनों तक बस आंखों के आंसू ही मेरी भाषा बने रहे। इसी तरह जीवन में मैंने कई बार महसूस किया है कि अचानक मिली खुशखबरी, शोक-समाचार या सुखद आश्चर्य  के चलते सबसे पहले आदमी की भाषा खो जाती है। ऐसे में हमारी भावनाएं केवल भाव-भंगिमाओं के जरिए ही अभिव्यक्त होने लगती हैं। अलग-अलग परिस्थितियों में अपनों की उपस्थिति और भाव-भंगिमाएं आदमी के दिल में उतर जातीं हैं। किसी को कुछ कहने की आवश्यकता नहीं पड़ती। सुख और दुख की ये परिस्थितियां बताती है कि भाषा मनुष्य के सामान्य लोक- व्यवहार के लिए एक टूल है। यह एक ऐसा माध्यम जिसके जरिए मनुष्य अपनी बात दूसरों तक पहुंचाता है।

किसी क्षेत्र की भाषा क्या होगी यह परिस्थितियों पर निर्भऱ है। क्रमिक विकास से विकसित हुई भाषाओं के बीच किसी भी रूप में अंतर विरोध नहीं है। न कोई भाषा अच्छी या बुरी कही जा सकती है। भाषा का उद्भव और विकास परिस्थितियों पर निर्भर है। मैं जिस शहर से आता हूं वहां मिश्रित आबादी है। इसलिए सभी ने सहज ही हिंदी को अपनी भाषा के तौर पर अपना लिया है। वहीं दूसरी तरह की मातृभाषाओं के लोग सहज ही उन भाषाओं को भी सीख गए जिसे बोलने वाले उनके आस-पास, शहर-मोहल्लों में रहते हैं। बेशक, इसकी शुरूआत जोर-जबरदस्ती या कुछ पाने की मंशा से नहीं हुई। लोक-व्यवहार में लोग पहले पहल हंसी-मजाक में अल्प प्रचलित भाषाओं में बोलने लगते और धीरे-धीरे  उस भाषा में काफी हद तक पारंगत हो जाते हैं। बचपन में मैं अपने पैतृक गांव जाने से इसलिए कतराता था, क्योंकि वहां की आंचलिक भाषा मेरी समझ में नहीं आती थी। इसकी वजह से मैं जितने दिन गांव में रहता, असहज बना रहता। लेकिन मजबूरी में ही सही गांव आते-जाते रहने से मैं काफी हद तक वहां की आंचलिक भाषा को समझने लगा। भले ही मैं धारा प्रवाह वहां की भाषा न बोल पाऊं। लेकिन दो लोगों की बातचीत से मैं अच्छी तरह से समझ जाता कि वे आपस में क्या बात कर रहे हैं।


भाषा का उद्भव और विकास कई बातों पर निर्भऱ हैं। अक्सर देखा गया है कि भाषा की समृद्धि काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि वहां की जीवन शैली और लोक-व्यवहार कैसा है। जिस समाज में जीवन सहज-सरल है और लोग विचारशील होते हैं तो वहां की भाषा स्वतः ही मीठी और परिमार्जित होने लगती है। क्योंकि इससे जुड़े लोग भाषा के शोधन पर लगातार जोर देते रहते हैं। वहीं विषम परिस्थितियों के बीच कठोरतम दैनंदिन जीवन वाले क्षेत्र की भाषा में ठेठ और अक्खड़पन हावी रहता है। क्योंकि इस भाषा को बोलने वालों को परिस्थितियों से जूझने के बाद इतना समय नहीं मिल पाता कि वे भाषा के परिमार्जन व दूसरी बातों की ओर ध्यान दे सकें। इस बात को ऐसे भी समझा जा सकता है कि सुसंस्कृत समाज में बच्चों के नाम काफी सोच-विचार के बाद तय होते हैं। वहीं इसके विपरीत समाज में जिसने जो तय कर दिया वही बच्चों का नाम बन जाता है। बच्चों के व्यस्क होने के बाद भी कोई उनमें संशोधन या परिवर्तन की आवश्यकता महसूस नहीं करता। मसलन मैने अपने गांव में अनेक लोगों के नाम लड्डू, रसगुल्ला, लल्लू और कल्लू सुने हैं। इसलिए यह तय है कि भाषा हृदय से निकलने वाली भावना है।महज सुविधा के दृष्टिकोण से भाषाओं का उद्भव और विकास हुआ है। हर भाषा का एकमात्र उद्देश्य आदमी से आदमी को जोड़ना है। इसमें कहीं कोई अंतर-विरोध नहीं है।

कोई किसी भी भाषा को महान या दूसरी भाषाओं को तुच्छ नहीं कह सकता। हालांकि यह भी सच है कि समाज में भाषा के नाम पर अनेक लड़ाई-झगड़े हुए हैं। इसे कम या खत्म करने में तकनीकी अथवा प्रौद्योगिकी का बहुत बड़ा हाथ है। मुझे बड़ी खुशी होती है जब मैं देखता हूं कि मात्र धुन मधुर लगने पर ही लोग मोबाइल पर उन गानों को भी बार-बार सुनते हैं जो उनकी अपनी भाषा में नहीं है। कई तो ऐसे गानों को अपनी कॉलर या रिंग टोन भी बना लेते हैं। भाषाओं के मामले में उदारता का इससे बड़ा उदाहरण भला और क्या हो सकता है। शादी-समारोह में बजने वाले गीतों में भी अब भाषाई संकीर्णता कहीं नजर नहीं आती। किसी भी भाषा के गीत में रिदम और लय महसूस होते ही लोग उस पर नाचने-थिरकने लगते हैं। यही नहीं, उन्हीं गीतों को बार-बार बजाने की मांग भी अधिकारपूर्वक होती है। यह बड़ा परिवर्तन महज दो दशकों में हुआ है। आज एक ही मोबाइल में अनेक भाषाओं में लिखने और संदेश भेजने की सुविधा है। अब हर कोई इसे आत्मसात कर चुका है। कला व मनोरंजन जगत भी भाषाओं  को एक मंच पर लाने में सफल रहा है। आज टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले कॉमेडी शो के जरिए हर भाषा-भाषी लोग उसका आनंद लेते हुए हंसते-खिलखिलाते हैं। कोई यह नहीं सोचता कि यह किस भाषा में पेश किया जा रहा है। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि भारतीय भाषाऐं आपस में निकट आ रहीं हैं और हमारी भाषाओं का भविष्य उज्ज्वल है।

यह लेख श्री तारकेश कुमार ओझा जी द्वारा लिखा गया है। श्री ओझा जी पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और पेशे से पत्रकार हैं तथा वर्तमान में दैनिक जागरण से जुड़े हैं। इसके अलावा वे कई अन्य पत्र-पत्रिकाओं और वेबसाइटों के लिए भी स्वतंत्र रुप से लिखते रहते हैं।
संपर्कः  भगवानपुर, जनता विद्यालय के पास वार्ड नंबरः09 (नया) खड़गपुर (पं.बं.) पिनः 721301, जिला - पश्चिम मेदिनीपुर, दूरभाषः 09434453934

नोट: आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। Hindi e-Tools || हिंदी ई-टूल्स का इनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।

2017-01-03

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हिंदी साहित्य के कालविभाजन और नामकरण के आधार पर संवत 1375-1700 वि. तक के कालखण्ड में सृजित हिंदी साहित्य में भक्ति भावना की प्रधानता होने के कारण आचार्य शुल्क ने इस काल को भक्तिकाल का नाम दिया है। प्रमुख आलोचक डा. नगेन्द्र ने इस समय सीमा को 1350-1650 ई. माना है। आदिकाल के वीरता और श्रृंगार से परिपूर्ण साहित्य से एकदम भिन्न इस काल के साहित्य में भक्ति की शान्त निर्झरिणी बहती है।
भक्तिकालील हिंदी साहित्य की परिस्थितियाँ
कोई भी साहित्यिक प्रवृत्ति यूँ ही अचानक विकसित नहीं होती, उसके पीछे कई सारे प्रमुख कारक, कई शक्तियाँ और तमाम परिस्थितियाँ सक्रिय रहती हैं। साहित्य भी इनसे अवश्य प्रभावित होता है और कालांतर में एक नया स्वरूप ग्रहण करता है। लगभग 300 वर्षों के भक्ति साहित्य का सृजन कोई सहज-सरल घटना नहीं थी। तत्कालीन इतिहास और समाज पर नजर डालें तो स्पष्ट होता है कि इसके पीछे कोई एक नहीं बल्कि अनेक परिस्थितियां सक्रिय थीं। संक्षेप में देखें तो भक्तिकाल में निम्नलिखित परिस्थितियां सामने आती हैं -

1.     राजनीतिक परिस्थितियाँ:
  • सन 1375-1526 ई तक उत्तर भारत में तुगलक वंश, सैयद वंश, लोदी वंश, तत्पश्चात मुगल आदि अनेक राजवंशों का शासन रहा। तुगलक वंश में न्याय व्यवस्था ‘कुरान’ और ‘हदीस’ पर आधारित थी।
  • बाबर, हुमायूँ, अकबर, जहाँगीर, और शाहजहाँ आदि का शासन भक्तिकाल की समय-सीमा में ही था। इसके अलावा कुछ वर्षों तक शेरशाह नामक अफगान का भी शासन रहा।
  • जहाँ फिरोज शाह तुगलक हिंदुओं के प्रति असहिष्णु था वहीं शेरशाह ने मालगुजारी और कर की उचित व्यवस्था की।
  • अकबर में अन्य मुगल शासकों की अपेक्षा हिन्दू जनता के प्रति अधिक सहिष्णुता थी तथा उसके शासन काल में भू-व्यवस्था में भी पर्याप्त सुधार हुआ।
  • राजनीतिक दृष्टि से यह काल हिंदुओं के परायण का काल था।
  • इस तरह देखा जाए तो भक्तिकाल के आरम्भिक दिनों में इस्लामी आक्रांताओं के आगमन से यह काल उथल-पुथल, युद्ध, संघर्ष और अशांति का काल रहा। किंतु बाद में धीरे-धीरे शांति और स्थिरता की ओर बढ़ा।
इस तरह देखा जाए तो भक्तिकाल के आरम्भिक दिनों में इस्लामी आक्रांताओं के आगमन से यह काल उथल-पुथल, युद्ध, संघर्ष और अशांति का काल था। किंतु बाद में धीरे-धीरे शांति और स्थिरता की ओर बढ़ा।

2.    सामाजिक परिस्थितियाँ:
  • भक्तिकाल में भारतीय समाज प्रमुख रूप से दो वर्गों में विभाजित था। एक वर्ग राजा, महाराजा, सेठ-साहूकार, सुल्तान तथा सामंतों आदि का था वहीं दूसरे वर्ग में किसान, मज़दूर, दलित, राज्य कर्मचारी और पारम्परिक काम धंधे में लगे लोग थे।
  • हिंदुओं में वर्ण व्यवस्था / जाति व्यवस्था अत्यंत कठोर थी और छुआछूत की भावना व्याप्त थी। इसी जाति व्यवस्था के कारण एक केन्द्रीय सत्ता होने के बावजूद भी समाज में एकता नहीं थी।
  • स्त्रियों को बहुत अधिकार नहीं मिले थे, उन्हें दोयम दर्जे का नागरिकता प्राप्त थी। सती प्रथा और पर्दा प्रथा का भी प्रचलन था।
  • इस्लाम में मौजूद समानता की भावना ने वंचित वर्ग को आकर्षित किया। इसके परिणाम स्वरूप निम्न वर्ग के लोगों में हिन्दू धर्म से इस्लाम में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हुआ।
  • साधु सन्तों में पाखंड एवं वाह्याडम्बरों का बोलबाला था।
  • कला के क्षेत्र में हिन्दू संस्कृति पर मुस्लिम संस्कृति का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
  • दोनों संस्कृतियों में पारम्परिक आदान-प्रदान हुआ।

भक्तिकाल में समाज परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा था। एक तरफ परम्परावादी लोग अपनी परम्पराओं को बनाए रखने के पक्ष में थे तो दूसरी तरफ नव इस्लाम के हितैशी लोग स्वयं को प्रगतिशील बता कर समाज में बदलाव लाना चाहते थे। तत्कालीन कवियों की साहित्य सर्जना उक्त परिस्थितियों से प्रभावित थी और उनकी रचनाओं यह स्पष्ट देखा जा सकता है।

3.    धार्मिक परिस्थितियाँ:
  • वैदिक धर्म के स्वरूप में परिवर्तन हुआ तथा वैदिक कर्मकांडों की महत्ता कम हो गयी। इन्द्र, वरूण आदि अनेक वैदिक देवताओं के स्थान पर विष्णु (मूल ब्रह्म) की पूजा विभिन्न रूपों में होने लगी।
  • वैदिक धर्म के केन्द्रीय देवता इन्द्र के स्थान पर विष्णु को मुख्य शक्ति के रूप में स्थापित किया गया। आगे चलकर विष्णु के ही दो रूपों को कृष्ण और राम के स्वरूप में स्वीकारा गया और इसी से क्रमशः कृष्ण भक्ति धारा और राम भक्ति धारा की उत्पत्ति हुई।
  • बौद्ध धर्म विकृतियों के फलस्वरूप हीनयान और महायान दो शाखाओं में विभक्त हे गया।
  • महायानियों ने जनता के निम्न वर्ग को जादू-टोना, तंत्र-मंत्र के चमत्कार दिखा कर प्रभावित किया।
  • नाथों एवं सिद्धों में कर्मकांड के स्थान पर गुरु को महत्व दिया गया।
  • हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों में पूजा, नमाज, माला, तीर्थयात्रा, अज़ान, रोजा जैसे वाह्य आडंबरों की अधिकता हो गयी थी।
  • सूफियों ने हिन्दू-मुस्लिम सांस्कृतिक एकता का आधार तैयार किया तथा समाज के सभी वर्गों में बंधुत्व की भावना का संचार किया।
  • संत कवियों ने राम के लोक रक्षक स्वरूप तथा कृष्ण के लोक रंजक स्वरूप की स्थापना की।
  • ईश्वर के सगुण और निर्गुण दोनों ही रूपों को मान्यता।
दक्षिण से शुरू हुई भक्ति की लहर उत्तर भारत में भी आई और यहां इसे खुले दिल से स्वीकार भी किया गया। हिंदू और इस्लाम दोनों ही धर्मों में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों एवं बाह्याडम्बर को रोकने के लिए तत्कालीन संतों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कबीर का समाज सुधार, जायसी का प्रेम, तुलसी का समन्वयवाद तथा सूरदास द्वारा कृष्ण के लोकरंजन स्वरूप का चित्रण निश्चय ही तत्कालीन परिस्थितियों की देन है।


4.    सांस्कृतिक परिस्थितियाँ:
  • सांस्कृतिक दृष्टि से देखा जाए तो भक्तिकाल एक मिश्रित या समन्वित संस्कृति के विकास का काल है।
  • भारत में इस्लाम के आने से पहले ही कई अन्य जातियाँ का आगमन हो चुका था। इन जातियों के प्रभाव से भारत में एक मिली-जुली संस्कृति का विकास हुआ।
  • इस्लाम के आने से एक बार पुनः भारत में सांस्कृतिक संक्रमण का दौर आया और खान-पान, रहन-सहन, शिक्षा, साहित्य, स्थापत्य कला, मूर्तिकला, संगीत एवं चित्रकला में काफी बदलाव देखने को मिला।
  • विदेशी तुर्क एवं भारतीय स्थापत्य शैली के मिश्रण से गुजराती एवं जौनपुरी स्थापत्य शैली का विकास हुआ।
  • भक्तिकाल के कवियों ने भक्ति साहित्य को संगीत से जोड़ा। वे अपनी रचनाओं को गा-गाकर लोगों तक पहुँचाते थे। कुछ कवियों ने विभिन्न रागों में भी काव्य रचना की है।
  • भक्तिकाल में संगीत के साथ ही चित्रकला की भी खूब उन्नति हुई। मुगल शासकों द्वारा चित्रकला को राजाश्रय प्रदान किया गया।
इस प्रकार हम देखते हैं कि भक्तिकाल में पर्व-त्योहार, उत्सव, साहित्य एवं कलाओं आदि के साथ-साथ संस्कृति के लगभग सभी क्षेत्रों में आपसी समन्वय व मिश्रण के माध्यम से एक मिश्रित अथवा समन्वित संस्कृति का विकास हुआ।

निश्चय ही भक्तिकाल का साहित्य श्रेष्ठ, अनुपम एवं अद्वितीय है। हम यकीनन कह सकते हैं कि भक्तिकाल  के साहित्य को तत्कालीन परिस्थितियों ने काफी हद तक प्रभावित किया। इसी का परिणाम है कि इस काल की साहित्य रचना अपने पूर्ववर्ती वीरता और श्रृंगार से परिपूर्ण साहित्य से काफी भिन्न है। अब साहित्य में वीरता और श्रृंगार के स्थान पर भक्ति की प्रधानता हो गयी थी।