2016-04-20

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हिंदी कम्प्यूटिंग से संबन्धित लेखों की शृंखला (Series) का दूसरा लेख

हिंदी कम्प्यूटिंग के आधारभूत तत्व : 

तकनीकी रूप से देखा जाए तो हिंदी कम्प्यूटिंग अभी भी अपनी शैशवावस्था में ही है। अभी भी कंप्यूटर में हिन्दी या अन्य भारतीय भाषाओं को सौ फीसदी सपोर्ट करने वाले प्रभावी हार्डवेयर और सॉफ्टवेयरों का विकास नहीं हुआ है। कभी टेक्स्ट (Text) का स्क्रीन पर बिखर जाना तो कभी हिन्दी में कंप्यूटर पर काम करते वक्त सिस्टम का धीमा हो जाना अथवा हैंग हो जाना, तो कभी प्रिंटिंग में आने वाली समस्याएं आदि हिन्दी कम्प्यूटिंग की दिशा में बाधक हैं। तमाम स्मार्ट फोनों में हिन्दी को लेकर अभी भी कुछ न कुछ समस्याएँ बनी हुई हैं, हालांकि यूनिकोड (Unicode) के निरंतर विकास के साथ ही अनेक दिक्कतें दूर होती जा रही हैं। फिर भी अंग्रेजी या तकनीकी रूप से समृद्ध अन्य भाषाओं के साथ प्रतियोगिता में बने रहने के लिए जल्द से जल्द कंप्यूटर में सहज रूप से हिन्दी समर्थन के अनुकूल विभिन्न हार्डवेयरों व सॉफ्टवेयरों के पर्याप्त मात्रा में निर्माण और निरंतर परिमार्जन की आवश्यकता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि कुछ ऐसे आधारभूत तत्व हैं जिनसे हिंदी कम्प्यूटिंग पूर्णतया जुड़ी हुई है और इन पर ध्यान देना अनिवार्य है। मोटे तौर पर यदि हिन्दी कम्प्यूटिंग को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख आधारभूत तत्वों को सूचीबद्ध किया जाए तो प्राथमिक रूप से निम्नलिखित सूची तैयार हो सकती है:-
  • हिन्दी इनपुट टूल (Hindi Input Tools): यूं तो भारत सरकार ने INSCRIPT कीबोर्ड को हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के लिए दो दशक पहले ही मानक घोषित कर दिया था, किन्तु यह अभी भी लोकप्रिय नहीं हुआ है। अभी भी समानान्तर रूप से कई इनपुट टूल्स का प्रयोग किया जा रहा है। इसके पीछे के कारणों को खोजा जाए और कुछ सुधारों संशोधनों की यदि आवश्यकता हो तो यथानुसार परिमार्जन कर जितनी जल्दी हो सके हिन्दी के लिए एक सर्वग्राह्य और सरल की-बोर्ड/ इनपुट प्रणाली विकसित करनी होगी।
  • हिन्दी वर्तनी एवं व्याकरण जांचक (Hindi Spell and Grammar Checker): अंग्रेजी के समान व्यापक शब्दभंडार युक्त एक विश्वसनीय वर्तनी एवं व्याकरण जांचक की अत्यंत आवश्यकता है, ताकि नए लोग बिना झिझक हिन्दी में काम कर सकें।
  • फॉण्ट परिवर्तक ( Font Converter ): आज भी डिजिटल हिन्दी में बहुत सारा काम गैर-यूनिकोड फोंटों (None-Unicode Fonts) में ही है। जिसके कारण इसे ऑनलाइन हिन्दी ब्लॉग (Hindi Blog), वेबसाइट (Hindi Website) अथवा ई-पत्रिकाओं (Hindi E-magazine) आदि के रूप में प्रदर्शित नहीं किया जा सकता। इसके लिए आवश्यक है कि उच्च कोटि के मानक और शुद्ध परिणाम देने वाले फॉन्ट परिवर्तक / Font Converter सॉफ्टवेयरों का विकास किया जाए। हालांकि इस दिशा में सी-डैक एवं अन्य संस्थाओं के साथ ही व्यक्तिगत स्तर पर भी काम किया जा रहा है, परंतु मांग के हिसाब से अभी भी यह नाकाफ़ी है।
  • लिपि परिवर्तक (Script Converter): देवनागरी लिपि से अन्य लिपियों तथा अन्य लिपियों से देवनागरी लिपि में परिवर्तन करने वाले लिपि परिवर्तक सॉफ्टवेयरों की बहुत आवश्यकता है। इससे यह लाभ होगा कि जिन लोगों को देवनागरी लिपि को पढ़ने में समस्या है, वे अपनी लिपि के माध्यम से ही हिन्दी पढ़ सकेंगे। इससे डिजिटल दुनिया में हिन्दी और अधिक तेजी से फैलेगी।
  • मशीनी अनुवाद (Machine Translation): एक अच्छे मशीनी अनुवादक सॉफ्टवेयर की हमेशा से आवश्यकता बनी हुई है। यूं तो कहा जाता है कि मानवीय अनुवाद का विकल्प मशीन कभी नहीं हो सकती , किन्तु तकनीकी के वर्तमान युग में जब हम आर्टिफ़िशियल इंटइलीजेंसी की बात करते हैं, रोबोटों को प्रशिक्षित कर सकते हैं तो मशीन के द्वारा सटीक अनुवाद क्यों नहीं कर सकते? इस दिशा में माइक्रोसोफ्ट, गूगल के साथ ही कई कंपनियों ने काम किया है। जिसमें भारत सरकार द्वारा विकसित ‘मंत्र’ सॉफ्टवेयर भी शामिल है। किन्तु अभी तक सर्वाधिक शुद्धता गूगल अनुवाद से ही प्राप्त की जा सकी है।
  • हिन्दी पाठ से वाक् (Hindi Text to Speech): टाइप किए गए हिन्दी पाठ को ध्वनि में बदलने की तकनीकी हिन्दी कम्प्यूटिंग की दिशा में प्रभावी बदलाव ला सकती है। आजकल सभी के पास समय का बहुत अभाव है। ऐसे में लोग ईयरफ़ोन कान में लगाकर चलते- फिरते ही हिन्दी समाचार, साहित्य, आलेख या अन्य प्रशासनिक दस्तावेजों को आसानी से सुन सकते हैं। इसके माध्यम से नेत्रहीन छात्रों को कंप्यूटर के माध्यम से हिन्दी पढ़ाने की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव हो सकता है। इस प्रकार के कई सॉफ्टवेयर वर्तमान में उपलब्ध हैं। इनमें राजभाषा विभाग भारत सरकार के सहयोग से C-DAC द्वारा विकसित “प्रवाचक” सॉफ्टवेयर का नाम लिया जा सकता है। किन्तु इनकी संख्या में वृद्धि के साथ ही गुणवत्ता में भी सुधार की आवश्यकता है।
  • हिन्दी वाक् से पाठ (Speech to Text): हिन्दी में बोली गयी बात को हिन्दी टेक्स्ट में बदलने के सॉफ्टवेयर के विकास से समय की तो बचत होगी ही, उत्पादन क्षमता में भी कई गुना वृद्धि हो सकती है। इस दिशा में गूगल स्पीच टू टेक्स्ट (Google Speech to Text) एक सराहनीय काम है। किन्तु अभी यह ऑनलाइन ही उपलब्ध है। डिजिटल हिन्दी के विकास के लिए इस प्रकार के डेस्कटॉप सोफ्टवेयरों की बहुत आवश्यकता है, जिन्हें बिना इंटरनेट की ही ऑफलाइन मोड में प्रयुक्त किया जा सके।


  • देवनागरी ओसीआर (Hindi Optical character Recognition – OCR): किसी चित्र (image) में देवनागरी लिपि में लिखित सामग्री को कम्प्यूटर से पढ़ने योग्य टेक्स्ट (Readable Text) में बदलने वाले सॉफ्टवेयर की बहुत आवश्यकता है। इससे स्कैन की गई, पीडीएफ़ (.pdf) अथवा इमेज (img) फाइल को, संपादित करने योग्य (Editable) वर्ड डॉक्यूमेंट में बदला जा सकता है। आज विश्व की कई भाषाओं में इस प्रकार के अनेक ओसीआर सॉफ्टवेयर उपलब्ध है। किंतु दुर्भाग्य से हिन्दी में अभी कोई ऐसा ओसीआर उपलब्ध नहीं है जो 100 प्रतिशत सही परिणाम दे सके।
  • हिन्दी के विभिन्न ई-शब्दकोश एवं विश्व कोश (Online Hindi Dictionaries and encyclopedia): इन्टरनेट जगत में जितने अधिक और प्रामाणिक शब्दकोश एवं विश्व कोश उपलब्ध होंगे, हिन्दी में काम करने में उतनी ही आसानी होगी।
  • हिन्दी की ई-पुस्तकें (Hindi E-books): आज किन्डल बुक रीडर, टैबलेट और आइपैड का जमाना है। हर व्यक्ति डिजिटल डिवाइस पर पढ़ना पसंद करने लगा है। इसलिए हिन्दी में जितनी अधिक संख्या में ई-पुस्तकें और वेब-पत्रिकाओं का प्रकाशन होगा कंप्यूटर जगत में उतना ही हिन्दी के हित में होगा।
  • हिन्दी में खोज (Hindi Search on Internet): अभी भी गूगल, बिंग, याहू आदि सर्च इंजनों में रोमन में लिखी हिन्दी के माध्यम से ही हम सर्च करते हैं। अगर हमें भारतीय संविधान हिन्दी में खोजना हो तो हम- Indian Constitution in Hindi अथवा Bhaarteey Sanvidhaan लिखकर सर्च करते हैं। मजबूरीवश हमें ऐसा करना पड़ता है, अभी भी इन्टरनेट पर सीधे हिन्दी में सर्च करने पर उतने सटीक परिणाम प्राप्त नहीं होते जितने रोमन में लिखी हिन्दी अथवा अंग्रेजी के माध्यम से सर्च करने पर प्राप्त जोते हैं।
  • हिन्दी में ईमेल (Hindi Email): अभी भी कितने ही सरकारी कार्यालयों में हिन्दी में ई-मेल भेजने की सुविधा उपलब्ध नहीं है। कारण, इसके लिए वे जिस सर्वर सॉफ्टवेयर का उपयोग कर रहें है, वह या तो बहुत पुराना है या यूनिकोड को सपोर्ट करने वाला (Unicode Supported) नहीं है। इस दिशा में बहुत जल्दी और तेजी से प्रयास करने होंगे तभी डिजिटल इंडिया की संकल्पना के साथ हिन्दी को जोड़ा जा सकता है।
  • देवनागरी का टाइप-सैटिंग तथा फॉण्ट डिजाइन (Type setting and Font Design): यूनिकोड के विकास से हिन्दी कम्प्यूटिंग से जुड़ी अनेक समस्याओं का समाधान तो हो गया है, किन्तु प्रिंटिंग के क्षेत्र में अभी भी समस्या बनी हुई है। इसका प्रमुख कारण है हिन्दी प्रिंट के लिए प्रिंटिंग मशीनें या सॉफ्टवेयर देवनागरी के 8-BIT ट्रू-टाइप फोंटों जैसे Kruti Dev आदि को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। इस दिशा यूनिकोड समर्थित फॉण्टों के विकास के साथ ही प्रिंटिंग सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर में भी वांछित सुधार करने होंगे।
हिन्दी कम्प्यूटरी के लिये विशेष प्रकार का हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर का विकास का मुद्दा सर्वाधिक महत्वपूर्ण और प्राथमिक है जिस पर पर्याप्त ध्यान दिए बिना हिंदी कम्प्यूटिंग के सपने को साकार नहीं किया जा सकता है।

हिन्दी कम्प्यूटिंग  का वर्तमान स्वरूप :

उक्त विचार विश्लेषण के बाद देखा जाए तो वर्तमान में हिंदी कम्प्यूटिंग धीमी गति से ही सही किंतु शनै: शनै: प्रौढ़ता प्राप्त कर रही है। आज यूनिकोड के आ जाने से हम हिंदी में ई मेल भेज सकते हैं, एमएस-वर्ड, एक्सेल आदि की फाइलें हिंदी में बना सकते हैं, पावर प्वाइंट प्रस्तुतीकरण की मन मोहक स्लाइडें बना सकते हैं। सीमित विकल्पों के साथ ही सही किन्तु पलक झपकते ही गूगल, याहू आदि खोजी इंजनों (search engines) की सहायता से इंटरनेट के विशाल सागर से हिंदी के मोती चुन सकते हैं। वर्तमान में इंटरनेट पर हिंदी में अथाह सामग्री उपलब्ध है। 21 अप्रैल 2003 को सिविल इंजीनियर व प्रोग्रामर आलोक कुमार द्वारा “ नौ दो ग्यारह” नाम से हिंदी का पहला ब्लॉग लिखा गया। किंतु इसके बाद तो यह सिलसिला ऐसा चल पड़ा कि आज इंटरनेट पर सैकड़ों नहीं हजारों हिंदी ब्लॉगर सक्रिय हैं। हिन्दी के लिए अब तक जितने सॉफ्टवेयरों, एप्लीकेशनों का विकास हुआ है उन में से अधिकांश ऑनलाइन ही हैं। जिन्हें ऑफलाइन उपयोग करने हेतु डेस्कटॉप सॉफ्टवेयरों के रूप में विकसित करना होगा। सरकारी प्रयास और तेज करने होंगे। तभी हम हिन्दी को डिजिटल दुनिया की प्रमुख भाषा के रूप में स्थापित करने में सफल होंगे। यूँ तो स्थानीय स्तर के साथ ही साथ गूगल, माइक्रोसॉफ्ट आदि के द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हिन्दी को लेकर रोज नए- नए तकनीकी आविष्कार किए जा रहें है, नित नए सॉफ्टवेयर अस्तित्व में आ रहें हैं, किन्तु इन सब के बावजूद भी हिंदी कम्प्यूटिंग को अभी एक लंबा सफर तय करना है।

नोट: हिंदी कम्प्यूटिंग से संबन्धित तीन लेखों की शृंखला (Series) में का यह दूसरा लेख है, इस कड़ी के अन्य लेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें और कमेन्ट बॉक्स के माध्यम से अपने विचार और प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएं।

तीसरा लेख "हिन्दी कम्प्यूटिंग : कुछ बाधाएं और कुछ उपाय" यहाँ से पढ़ें।
पहला लेख "हिंदी कम्प्यूटिंग : एक परिचय" यहाँ से पढ़ें।

2016-04-11

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भूमिका:

बैंक, सरकारी कार्यालयों, स्कूल दफ्तरों, निजी प्रतिष्ठानों या कोर्ट कचहरी आज हर जगह कम्प्यूटर की घुसपैठ हो गई है। लगता है कि बिना कम्प्यूटर के किसी भी संस्था या कहें कि राष्ट्र की व्यवस्था सुचारु रूप से संचालित हो सकती। यह कोई कपोल-कल्पना नहीं, बल्कि Information technology के इस युग की वास्तविकता है। आज जीवन के लगभग हर क्षेत्र में कम्प्यूटर की अनिवार्यता सी होती जा रही है। वर्तमान व्यवस्था में एक छोर से दूसरे छोर तक बैठे प्रत्येक व्यक्ति के हाथों तक कम्प्यूटर ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। ऐसे में कुछ मूलभूत सवालों का उठना लाज़िमी हैं; - क्या सूचना प्रौद्योगिकी के इस दौर में कम्प्यूटर की सहायता के बिना कोई भाषा लोकप्रिय हो सकती है? क्या कम्प्यूटर के बिना कोई भाषा जन- जन तक पहुंच कर सशक्त व समृद्ध हो सकती है ? क्या बिना कंप्यूटर के कोई भाषा व्यवसाय, मीडिया या शासन की भाषा बन कर अंतरराष्ट्रीय भाषा का दर्जा हासिल कर सकती है?
ये प्रश्न सुनने में बहुत ही मामूली से नजर आते हैं, किंतु भाषा से जुड़े होने के कारण ये आम आदमी और व्यवस्था की जड़ों से सीधे ही जुड़े हुए बुनियादी और अति महत्वपूर्ण प्रश्न हैं। आज के समय में यह सर्वसिद्ध सच्चाई है कि वही भाषा समृद्ध और लोकप्रिय हो सकती है जो Computer के लिए उपयुक्त हो, अर्थात जिसमें कम्प्यूटिंग आसान हो। कम्प्यूटर और इंटरनेट ने पिछले एक दशक में दुनिया भर में डिजिटल क्रांति (digital revolution) ला दी है और लोगों के काम करने, सोचने व शासन-सत्ता चलाने के तरीकों में जबरदस्त बदलाव ला दिया है। वर्तमान में कम्प्यूटर हर किसी के लिए एक मूलभूत आवश्यकता बन चुका है। फिर ऐसे में हिन्दी हो या कोई भी अन्य भाषा कम्प्यूटर से दूर रहकर लोगों से कैसे जुड़ सकती है?


सत्तर के दशक के आरम्भ में जब आधुनिक कम्प्यूटर का निर्माण कम्प्यूटर का निर्माण हो रहा था, उसी समय से लोगों के मन में यह धारणा भी बैठ गई थी कि कम्प्यूटर अंग्रेजी के अलावा किसी अन्य भाषा में काम ही नहीं कर सकता, या कहें कि अंग्रेजी ही एक मात्र भाषा है जिसका कम्प्यूटर में प्रयोग किया जा सकता है। उस समय काफी हद तक यह बात सही भी थी। इसका कारण था अपने प्रारम्भिक काल में कम्प्यूटर अनुप्रयोग हेतु अंग्रेजी के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा पर पर्याप्त ध्यान ही नहीं दिया गया। किंतु अब समय और तकनीकी विकास के साथ- साथ ये भ्रांत धारणाएं टूट रही हैं और भ्रम के बादल छट रहे हैं। यूनिकोड (Unicode) के आ जाने से स्थितियां बदल चुकी हैं। कम्प्यूटर के भाषायी बंधन पूर्णतः टूट चुके हैं। आज अंग्रेजी की ही तरह हिंदी में भी पर्याप्त संख्या में वेबसाइट (website), चिट्ठे (blogs), ईमेल (Email), गपशप (chat), मोबाइल संदेश, खोज इंजन (Search Engine), शब्द संसाधन (word processing) आदि उपलब्ध है। तकनीकी के बदलते परिदृश्य में हिंदी में नए- नए सॉफ्टवेयर बन रहे हैं। जैसे हिन्दी कीबोर्ड ले-आउट (Hindi Keyboard Layout), ऑनलाइन शब्दकोश (Online Dictionary), कम्प्यूटर के माध्यम से मशीनी अनुवाद (machine translation), बोलकर लिखने की सुविधा (Speech to Text), लिखे हुए पाठ को सुनना (Text to Speech), फोनेटिक टाइपिंग (Phonetic Typing), हिंदी ओसीआर(Optical Character Recognition), फॉन्ट परिवर्तक (font Converter) के साथ ही तमाम अन्य प्रकार के सॉफ्टवेयर भी आज सहजता से उपलब्ध हैं। प्रसिद्ध कवि, भाषाविद और Digital Hindi के क्षेत्र में निरंतर सक्रिय श्री अशोक चक्रधर कहते हैं- “अब कम्प्यूटर में हिंदी के प्रयोग को लेकर ‘शंकालु’ न होकर ‘जिज्ञासु’ होने की जरूरत है।”

हिन्दी कम्प्यूटिंग की विकास यात्रा:

हिंदी कम्प्यूटिंग की आरम्भिक यात्रा पर नजर डाली जाए तो स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि हिंदी कम्प्यूटिंग का इतिहास भी लगभग उतना ही पुराना है जितना कि कम्प्यूटर का। यह बात अलग है कि कम्प्यूटर में केवल अंग्रेजी का ही वर्चस्व बना रहा और हिंदी कम्प्यूटिंग कहीं पीछे हाशिए पर चली गई। किंतु धीरे-धीरे ही सही अब इस क्षेत्र में भी प्रगति हो रही है और डिजिटल दुनिया में हिंदी भी अपनी सशक्त उपस्थिति दर्जा करा रही है। सबसे पहले 1970-73 के बीच श्री आर. एम. के. सिन्हा और श्री एच. एन. महाबाला ने देवनागरी ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकग्निशन (OCR) पर तथा श्री पी. वी. एच. एल. नरसिम्ह्‍न, श्री वी. राजारमन और श्री बी. प्रसाद ने की-बोर्ड और कोडिंग स्कीम विकसित करने पर काम किया। किंतु कम्प्यूटरों की अधिक कीमत होने के कारण व्यावहारिक रूप से इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। इस क्षेत्र में वास्तविक शुरूआत भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), कानपुर के श्री आर. एम. के. सिन्हा और श्री एस. के. मलिक के प्रयासों से हुई। उन्होंने ‘एकीकृत देवनागरी कंप्यूटर’ के डिज़ाइन और विकास के प्रोजेक्ट पर काम किया और मात्र 8 महीने के अल्प समय में ही ‘एकीकृत देवनागरी कंप्यूटर’ तैयार हो गया तथा 1983 में दिल्ली में आयोजित तीसरे विश्व हिंदी सम्मेलन में इसका प्रदर्शन भी किया गया। इसके बाद बारी आई ‘जिस्ट प्रौद्योगिकी’ (Graphical and Intelligence based Script Technology- GIST) की जिसने भारतीय भाषाओं से संबंधित मशीन-भाषायी इंटरफेस की जटिल समस्या को काफी हद तक सुलझा दिया। 1983 में ही सी-डैक (C-DAC) ने जिस्ट प्रौद्योगिकी को अपनाया और इसके बाद कम्प्यूटिंग के लिए हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के मानकीकरण (India Languages Standardization) का कार्य आरम्भ हुआ। इस तरह हिंदी कम्प्यूटिंग की यह विकास यात्रा प्रगति के पथ पर चल पड़ी और एक के बाद एक सॉफ्टवेयर अस्तित्व में आते गए। डिजिटल दुनिया में हिन्दी कम्प्यूटिंग की इस यात्रा को संक्षेप में इस टेबुल के माध्यम से समझा जा सकता है:-
वर्ष हिन्दी आधारित कंप्यूटर प्रौद्योगिकी/ सोफ्टवेयरों का विकास क्रम
1983 डॉस (DOC) हिन्दी आधारित कंप्यूटर प्रौद्योगिकी/ सोफ्टवेयरों का विकास आरम्भ ।
1986 सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के इलेक्ट्रोनिकी विभाग (DOE) द्वारा भारतीय भाषाओं के लिये इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड को मानक कीबोर्ड के रूप में मान्यता ।
1991 यूनिकोड का आगमन जिसमें नौ भारतीय लिपियों देवनागरी, बंगाली, गुजराती, गुरुमुखी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम तथा ओड़िया को शामिल किया गया। यह एक क्रांतिकारी बदलाव सिद्ध हुआ।
1993 माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस प्रोफेशनल के आने के बाद 8-बिट (bit) हिन्दी फॉण्टों (Hindi Fonts) से विण्डोज़ में हिन्दी वर्ड प्रोसैसिंग सम्भव।
1995 विण्डोज़ के लिए सी-डैक द्वारा हिंदी सहित अन्य भाकतीय भाषाओें के समर्थन युक्त लीप ऑफिस (Leap Office), श्रीलिपि (Cdac Shree Lipi) तथा अक्षर(Akshar) आदि वर्ड प्रौसेसरों का आगमन।
1996 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के अवसर पर तत्कालीन रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव ने पीसी-डॉस के हिन्दी संस्करण का विमोचन किया जिसमें एक हिन्दी प्रोग्रामिंग भाषा (Hindi Programing Language) भी शामिल थी।
2000 यूनिकोड के माध्यम से हिन्दी समाचार पत्रों के आगमन से Internet पर हिन्दी क्रान्ति की शुरूआत। सी-डैक के हिन्दी ऑपरेटिंग सिस्टम इंडिक्स (Hindi Operating System) की शुरूआत, विण्डोज़ 2000 एवं माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस के दक्षिण एशियाई संस्करण में हिन्दी समर्थन (Hindi Support) आरम्भ ।
2002 लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम और अन्य प्रोग्रामों के हिन्दीकरण की शुरुआत।
2003 हिन्दी विकीपीडिया (Hindi Wikipedia) की शुरूआत। अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर टैली में हिन्दी समर्थन उपलब्ध। इंटरनेट सर्च हिन्दी में भी उपलब्ध, हिन्दी ब्लॉगों (Hindi Blogs) का पदार्पण तथा जीमेल द्वारा हिन्दी ईमेल की सुविधा उपलब्ध कराई गई।
2005 माइक्रोसॉफ्ट एक्सपी ऑपरेटिंग सिस्टम का हिन्दी का स्टार्टर संस्करण जारी किया गया.
2008 विण्डोज़ विस्टा जारी, विण्डोज़ का ऐसा पहला संस्करण जिसमें हिन्दी समर्थन अन्तर्निर्मित (Internal Hindi Support) पहले से ही है। अलग से कोई सैटिंग नहीं करनी पड़ती, बस टाइपिंग हेतु कीबोर्ड लेआउट सॉफ्टवेयर डालना पड़ता है। सी-डैक द्वारा हिन्दी श्रुतलेखन सॉफ्टवेयर (स्पीच टू टेक्स्ट) का विमोचन। गूगल ट्राँसलिट्रेशन टूल (Online Phonetic Typing) जारी किया गया।
2010 गूगल द्वारा हिन्दी अन्य प्रमुख विदेशी भाषाओं में और इसके विपरीत अनुवाद (Translation) की सुविधा उपलब्ध।
2010 टचस्क्रीन डिवाइसों पर हिन्दी टंकण हेतु टचनागरी नामक ऑनलाइन हिन्दी कीबोर्ड (Online Hindi Keyboard) जारी किया गया। भारतीय रुपया चिह्न ₹ यूनिकोड 6.0 में शामिल किया गया।
2011 वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग (Commission for Scientific Technical Terminology- CSTT) ने हिन्दी शब्दावलियाँ आनलाइन की। हिन्दी दिवस के दिन हिन्दी ट्विटर जारी।
2012 फायरफॉक्स का मोबाइल ब्राउजर हिन्दी में भी उपलब्ध।
2014 इस वर्ष गूगल ने कई महत्वपूर्ण कार्य किए। गूगल मैप्स में हिन्दी दिखने लगी, गूगल वाक् से पाठ (Google Speech To Text), हिन्दी वॉइस सर्च (Hindi Voice Search) एवं गूगल हिन्दी विज्ञापन की शुरूआत।
2015 गूगल डॉक्स की ओसीआर (Google Docs OCR) सुविधा में हिन्दी भाषा भी शामिल की गई।

हिन्दी कम्प्यूटिंग की लगभग तीन दशक की इस विकास यात्रा में सर्वाधिक महत्वपूर्ण वर्ष था 2005, जब माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज XP के लिए लीप (language Interface Pack) का निर्माण कर सम्पूर्ण हिंदी कम्प्यूटर (Complete Hindi Computer) के सपने को साकार करने की दिशा सर्वाधिक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया। बाद में माइक्रोसॉफ्ट ने 2007 में विण्डोज़ विस्टा और वर्ष 2011 में विण्डोज़ 7 के लिए भी लीप का निर्माण कर हिंदी कम्प्यूटिंग में असाधारण योगदान दिया। इसके बाद माइक्रोसॉफ्ट विण्डोज़ के जितने भी संस्करण आए हैं, वे सभी हिन्दी भाषा के इंटरफेस (Hindi Interface) से युक्त हैं।

नोट: हिंदी कम्प्यूटिंग से संबन्धित तीन लेखों की शृंखला (Series) में का यह पहला लेख है, इस कड़ी के अन्य लेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें और कमेन्ट बॉक्स के माध्यम से अपने विचार और प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएं।

दूसरा लेख "हिन्दी कम्प्यूटिंग : आधारभूत तत्व एवं वर्तमान स्वरूप" यहाँ से पढ़ें।
तीसरा लेख "हिन्दी कम्प्यूटिंग : कुछ बाधाएं और कुछ उपाय" यहाँ से पढ़ें।