2016-07-02

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हिंदी कम्प्यूटिंग से संबन्धित लेखों की शृंखला (Series) का तीसरा लेख

कुछ बाधाएं :

अभी भी हिंदी कम्प्यूटिंग की राह में अनेक अवरोध हैं जिन्हें दूर करके ही डिजिटल हिंदी की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। उदाहरण के लिए निम्नलिखित समस्याएं आज भी राह का रोड़ा बनी हुई हैं:-

  • कम्प्यूटर में हिंदी समर्थन को सक्रिय करने की समस्या:- कम्प्यूटर के ऑपरेटिंग सिस्टम में हिंदी समर्थन पहले से ही सक्रिय नहीं रहता है. इसे बाद में सक्रिय करना पड़ता हैं। उल्लेखनीय है की भारत में अभी भी windows Xp पर आधारित कंप्यूटर काफी संख्या में है, जिनमें हिंदी अथवा यूनिकोड सक्रिय करते समय ऑपरेटिंग सिस्टम की सी. डी या किसी विशेष डाटा फाइल की आवश्यकता होती है। इससे यूजर के अंदर मनोवैज्ञानिक रूप से झुंझलाहट की स्थिति बन जाती है और कभी- कभी वह सोचता है कि हिंदी आदि भारतीय भाषाएं सामान्य रूपे से कम्प्यूटर के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
  • हिन्दी की बोर्ड की समस्या:- ऑपरेटिंग सिस्टम में हिंदी सक्रिय होने के बाद भी अगली समस्या आती है की बोर्ड ले-आउट की, क्योंकि कम्प्यूटर का कीबोर्ड बाइडिफॉल्ट अंग्रेजी में ही होता है। कम्प्यूटर में हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के लिए भारत सरकार द्वारा मानक INSCRIPT Keyboard इनबिल्ट होता है, जो अभी भी अधिक प्रचलित नहीं है। अत: आसानी से काम करने के लिए अलग से की-बोर्ड सॉफ्टवेयर इंस्टाल करने की आवश्यकता होती है। जबकि अंग्रेजी के साथ ऐसी समस्या नहीं है।
  • हिंदी टाइपिंग की विभिन्न पद्धतियां:- अंग्रेजी टाइपिंग की तरह हिंदी टाइपिंग के लिए आज तक किसी प्रभावी और मानक टाइपिंग विधि का निर्माण नहीं किया जा सका है। हालांकि भारात सरकार ने काफी पहले ही INSCRIPT की बोर्ड को मानक घोषित कर दिया है, किन्तु यह लोकप्रिय नहीं हो सका। हिंदी टाइपिंग के लिई समानान्तर रूप से अनेक विधियां प्रचलित हैं जैसे- फोनेटिक, इनस्क्रिप्ट एवं रेमिंगटन आदि। किसी भी नए प्रयोक्ता के लिए यह भी एक जटिल समस्या हो सकती है कि वह किस पद्धति के साथ आरम्भ करे।
  • पुराने ऑपरेटिंग सिस्टमों में हिंदी सक्रिय करने में समस्या:- हमारे यहां आज भी पुराने ऑपरेटिंग सिस्टम वाले कम्प्यूटर बहुतायत में पाए जाते हैं या कहैं कि भारतीय माध्यम वर्ग के पास अभी में भी विण्डोज एक्सपी या उससे भी पुराने ऑपरेटिंग सिस्टम वाले कम्प्यूटर हैं। इन ऑपरेटिंग सिस्टमों पर हिंदी सक्रिय करना एक जटिल समस्या है।
  • गैर-यूनिकोड प्रोग्रामों में हिंदी टाइपिंग की समस्या:- युनिकोड के आ जाने के बाद भी अभी बहुत सारे प्रोग्रामों खासकर ग्राफिक्स और डीटीपी आदि में केवल 8 बिट ट्रू टाइप फॉन्टों जैसे कृतिदेव आदि के द्वारा और केवल रेमिंगटन टाइपिंग से ही सही हिंदी टाइप सम्भव है। हिंदी के व्यापक प्रयोग में यह एक बड़ी रुकावट है।
  • हिंदी कम्प्यूटिंग के क्षेत्र में जागरुकता का अभाव:- सूचना प्रौद्योगिकी के इस दौर में भी कम्प्यूटर में हिंदी प्रयोग के क्षेत्र में जागरुकता का अभाव है। यदि लोग जागरुक हो जाएं और शिक्षा-पाठ्यक्रम में सुधार के साथ छात्रों को उचित समय पर यूनिकोड एवं हिंदी कम्प्यूटिंग की जानकारी से दी जाए तो आधी से अधिक समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाएंगी।

कुछ उपाय:

समस्याओं के साथ ही साथ समाधान खोजने के प्रयास भी होते रहते हैं। विभिन्न तकनीकीविदों ने उक्त समस्याओं के अनेक समाधान भी प्रस्तुत किए हैं। इनमें से ‘ई-पण्डिट’ ब्लॉग पर श्री श्रीस जी द्वारा दिए गए कुछ सुझावों का मैं यहां उल्लेख करना चाहूंगा -
  • ऑपरेटिंग सिस्टमों में हिन्दी-इण्डिक सपोर्ट:- ऑपरेटिंग सिस्टमों में हिंदी – इण्डिक सपोर्ट पहले से ही मौजूद होना चाहिए, जिससे इसे सक्रिय करने का झंझट समाप्त हो जाए। माइक्रोसॉफ्ट के विण्डोज विस्टा और इसके बाद वाले नए ऑपरेटिंग सिस्टम में यह इनबिल्ट हो चुका है। अतः इस बारे में निश्चिंत रह सकते हैं कि आने वाले समय में नए ऑपरेटिंग सिस्टमों इण्डिक सपोर्ट पहले से ही मौजूद होगा इस तरह इस समस्या का समाधान कुछ समय बाद स्वत: ही हो जाएगा।
  • विण्डोज में हिन्दी के वैकल्पिक कीबोर्ड इनबिल्ट हों:- हिन्दी की बोर्ड को अलग से इंस्टाल करने की समस्या से छुटकारा पाने के लिए विण्डोज इंस्टाल करने पर हिन्दी लिखने के लिए हिंदी आईएमई या अन्य कीबोर्ड पहले से ही उपल्ब्ध होने चाहिए। अभी विण्डोज में सिर्फ इनस्क्रिप्ट आईएमई ही इनबिल्ट होता है, फोनेटिक तथा रेमिंगटन नहीं है। अगर ऑपरेटिंग सिस्टम में ये टाइपिंग टूल पहले से ही मौजूद होंगे तो अन्य स्रोतों से डाउनलोड कर इंस्टाल करने से मुक्ति तो मिलेगी ही, हिंदी कम्प्यूटिंग में क्रांतिकारी बदलाव आ जाएगा।
  • पुराने ऑपरेटिंग सिस्टमों में यूनिकोड समर्थन:- विण्डोज 98 से पहले के ऑपरेटिंग सिस्टमों में यूनिकोड का सीमित समर्थन ही है। क्योंकि इनके लिए प्रचलित आईएमई जैसे बाराह, इंडिक आईएमई आदि जैसे कीबोर्ड ड्राइवर न तो अब उपल्ब्ध हैं और नहीं बनाए जा सकते हैं। अभी इसका उपाय ब्राउजरों के लिए IME प्लगइन से ही किया जा सकता है।

उपर्युक्त के अतिरिक्त कुछ अन्य सुझाव भी ध्यान देने योग्य हैं जैसे – गैर यूनिकोडित प्रोग्रामों के लिए एक नॉन-यूनिकोड आईएमई/कीबोर्ड ड्राइवर बनाया जाय। हिंदी टंकण के लिए अंग्रेजी की तरह किसी एक उपयुक्त एवं मानक पद्धति को अनिवार्य कर सरकार द्वारा अभियान चलाकर उसे लोकप्रिय किया जाना चाहिए। कम्प्यूटर में हिन्दी के व्यापक प्रयोग को दृष्तिगत रखते हुए तथा शत-प्रतिशत हिंदी कम्प्यूटिंग का सपना देखने से पहले हमारे लिए विभिन्न सॉफ्टवेयरों का मानक हिंदी में अनुवाद करना अनिवार्य होगा। इन सबके अतिरिक्त आज के समय में कम्प्यूटर पाठ्यक्रमों में हिन्दी/इण्डिक कम्प्यूटिंग को स्थान देना सबसे बड़ी आवश्यकता है। सूचना प्रद्यौगिकी में अग्रणी भारत देश में किसी भी कम्प्यूटर पाठ्यक्रम में इण्डिक कम्प्यूटिंग विषय शामिल नहीं है। अच्छे-अच्छे आईटी प्रोफैशनलों को भी यूनिकोड के बारे पता नहीं हैं। यूनिकोड का नाम सुनते ही वो बगलें झांकने लगते हैं। ऐसे लोग हिंदी कम्प्यूटिंग में क्या योगदान दे पाएंगे। अत: हर विश्वविद्यालयी कम्प्यूटर पाठ्यक्रम में इण्डिक कम्प्यूटिंग विषय शामिल होना चाहिए जिसमें यूनिकोड, इनस्क्रिप्ट तथा अन्य टाइपिंग प्रणालियाँ, देवनागरी लिपि का परिचय, हिन्दी कम्प्यूटिंग के मौजूदा साधन तथा बहुभाषी सॉफ्टवेयरों (Multilingual Softwares) का विकास, प्राकृतिक भाषा संसाधन (Natural Language Processing) आदि की जानकारी शामिल हो।

और आखिर में कुछ अपनी बात:

इंटरनेट पर ब्लॉग, वेबसाइट आदि पर कोई पाठक अथवा जिज्ञासु गूगल जैसे सर्च इंजनों के माध्यम से ही पहुंचता है। यदि गूगल अपना इण्डिक ट्रांसलिट्रेशन टूल ‘Google India’ पेज तथा जीमेल पर लगा दे तो हिन्दी टाइपिंग और ब्लॉगिंग से अनभिज्ञ लोग भी इससे परिचित होंगे और हिंदी कम्प्यूटिंग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। सबसे महत्वपूर्ण होगा यूनिकोड के बारे में अधिक से अधिक जागरुकता फैलाना। परिस्थितियों को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि आज के समय में उन्हीं भाषाओं का अस्तित्व बच पाएगा जो इंटरनेट और कम्प्यूटिंग से जुड़ी होंगी। इस कसौटी पर हिंदी को खरा उतरने के लिए हिंदी में लिखने, खोजने, संदेश भेजने, सहेजने, फॉण्ट परिवर्तन करने संबंधी आदि विभिन्न सॉफ्टवेयरों की आवश्यकता होगी। अत: वर्तमान परिदृश्य में हिंदी कम्प्यूटिंग का महत्व और बढ़ जाता है। कम्प्यूटर के जरिए ही हिंदी एक वैश्विक भाषा का रूप ले सकेगी और विश्व की महत्वपूर्ण भाषाओं के बीच एक सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर सकेगी। हिंदी के नाम पर प्रतियोगिताओं, बैठकों, पुरस्कार योजनाओं आदि के साथ ही हिंदी कम्प्यूटिंग की ओर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। हिंदी को कम्प्यूटर पर उसका उचित स्थान दिलाकर ही सच्चे अर्थों में हिंदी को एक सशक्त भाषा बनाया जा सकता है।

नोट: हिंदी कम्प्यूटिंग से संबन्धित तीन लेखों की शृंखला (Series) में का तीसरा और अंतिम लेख है, इस कड़ी के अन्य लेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें और कमेन्ट बॉक्स के माध्यम से अपने विचार और प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएं।

पहला लेख "हिन्दी कम्प्यूटिंग : एक परिचय" यहाँ से पढ़ें।
दूसरा लेख "हिन्दी कम्प्यूटिंग : आधारभूत तत्व एवं वर्तमान स्वरूप" यहाँ से पढ़ें।
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