2016-11-24

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हिंदी साहित्य को एक व्यवस्थित स्वरूप में प्रस्तुत करने के उद्देश्य से विद्वानों ने साहित्य के इतिहास को कई काल-खण्डों में विभाजित किया है। साहित्य के काल विभाजन के बाद अध्ययन की सुविधा को ध्यान में रखते हुए तथा तत्कालीन प्रवृत्तियों व समय के अनुरूप प्रत्येक काल-खण्ड को एक अलग नाम दिया गया, यथा- आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल व आधुनिक काल आदि। हिंदी साहित्य के काल विभाजन एवं नामकरण के पीछे विभिन्न विद्वानों द्वारा अपने-अपने विचार रखते हुए उसके औचित्य को सिद्ध करने के प्रयास किए गए।


आइए, इस आलेख में हम हिंदी साहित्य के “आदिकाल के नामकरण और उसके औचित्य” के संबंध में हिंदी के कुछ प्रमुख आलोचकों और विद्वानों के विचारों और सिद्धांतों को जानने व समझने की कोशिश करते हैं -

आचार्य शुक्ल का नामकरण:-

  • 1929 ई. में प्रकाशित तथा शुक्ल जी द्वारा लिखित प्रथम तर्क संगत एवं अधिकांश विद्वानों द्वारा प्रमाणित “हिन्दी साहित्य का इतिहास” में आदिकाल (1050- 1375 ई.) को “वीरगाथा काल” नाम दिया गया ।
  • इस नामकरण का मुख्य आधार उस समय “वीरगाथाओं की प्रचुरता और उनकी लोकप्रियता” को माना गया।

साहित्य सामाग्री:-

शुक्ल जी ने “वीरगाथा काल” नामकरण के लिए निम्नलिखित 12 रचनाओं को आधारभूत साहित्य सामग्री के रूप में स्वीकार किया:-

क्र. सं. रचना का नाम रचनाकार रचनाकाल टिप्पणी
1. विजयपाल रासो नल्ल सिंह 1350 वि. मिश्र बंधुओं ने समय 1355 वि. माना है
2. हमीर रासो शारंगधर 1350 वि. यह ग्रंथ आधा ही प्राप्त है
3. कीर्ति लता विद्यापति 1460 वि. समय सीमा से बाहर
4. कीर्ति पताका विद्यापति 1460 वि. समय सीमा से बाहर
5. खुमान रासो दलपति विजय 1290 वि. मोतीलाल मेनारिया ने इसका समय 1545 वि. माना है
6. बीसलदेव रासो नरपति नाल्ह 1292 वि. प्रामाणिकता संदिग्ध है
7. प्रथ्वीराज रासो चंद्रबरदाई 1225-40 वि. स्वयं शुक्ल जी ने इस ग्रंथ के अर्ध-प्रामाणिक माना है
8. जयचंद्र प्रकाश भट्ट केदार 1225 वि. रचना अप्राप्त है, उल्लेख मात्र मिलता है
9. जयमयंक जस चन्द्रिका मधुकर कवि 1240 वि. रचना अप्राप्त है, उल्लेख मात्र मिलता है
10. परमाल रासो जगनिक 1230 वि. मूलरूप अज्ञात
11. खुसरो की पहेलियां अमीर खुसरो 1350 वि. वीरगाथाओं की परिपाटी से विचलन
12. विद्यापति पदावली विद्यापति 1460 वि. समय सीमा से बाहर
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में:- “इसी संक्षिप्त सामाग्री को लेकर थोड़ा-बहुत विचार हो सकता है, इसी पर हमें संतोष करना पड़ता है।

शुक्ल जी के नामकरण की आलोचना:-

शुक्ल जी द्वारा आदिकाल का नामकरण वीरगाथा काल के रूप में किए जाने के संबंध में विभिन्न विद्वानों में मतभेद रहे हैं। इस बारे में कुछ प्रमुख विद्वानों के मत निम्नानुसार हैं:-
  • शुक्ल जी ने अनेक रचनाओं को अपभ्रंश की कहकर हिन्दी के खाने से अलग कर दिया है। जबकि स्वयं उनके द्वारा चुनी गई 12 राचनाओं में प्रथम 4 अपभ्रंश की ही शामिल हैं।
  • पं. चंद्रधर शर्मा गुलेरी के अनुसार “अपभ्रंश मिश्रित हिंदी ही पुरानी हिंदी है।
  • डॉ. त्रिगुणायत के अनुसार “अपभ्रंश मिश्रित तमाम रचनाएँ, जिनके संबंध में कुछ विद्वानों को अपभ्रंश की होने का भ्रम हो गया है, पुरानी हिंदी की रचनाएँ ही मानी जाएंगी।"
  • राहुल सांकृत्यायन हजारी प्रसाद द्विवेदी आदि के अनुसार 850 वि. के आस-पास उपलब्ध अपभ्रंश की मानी जानी वाली रचनाएँ, हिन्दी के आदिकाल की सामाग्री के रूप में हैं। इसी आधार पर सिद्ध सरहपा को हिन्दी का प्रथम कवि माना जाएगा।

विभिन्न विद्वानों द्वारा दिए गए नाम और उनका औचित्य:-

हिंदी साहित्य के प्रथम पड़ाव अर्थात आदिकाल को विभिन्न विद्वानों द्वारा कई अलग-अलग नामों से अभिहित किया गया है। आदिकाल के के नामकरण के संबंध में कुछ प्रमुख विद्वानों के मत निम्नानुसार हैं -
  • आचार्य शुक्ल:- वीरगाथाओं की प्रचुरता और लोकप्रियता के आधार पर “वीरगाथा काल” नाम दिया।
  • डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी:- द्विवेदी जी के अनुसार वीरगाथा नाम के लिए कई आधार ग्रंथ महत्वपूर्ण और लोकप्रिय नहीं हैं तथा कइयों की प्रामाणिकता, समयसीमा आदि विवादित है। अत: “आदिकाल” नाम ही उचित है, क्योंकि साहित्य की दृष्टि से यह काल अपभ्रंश काल का विकास ही है।
  • रामकुमार वर्मा:- रामकुमार वर्मा ने इसे “चारण काल” कहा। उनके अनुसार इस काल के अधिकांश कवि चारण अर्थात राज-दरबारों के आश्रय में रहने वाले व सम्राटों का यशगान करने वाले ही थे।
  • महावीर प्रसाद द्विवेदी:- आरम्भिक अवस्था या कहें कि हिंदी साहित्य के बीज बोने की समयावधि के आधार पर महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने इस काल को “बीज-वपन काल” कहा। वैसे यह नाम भी आदिकाल का ध्योतक है।
  • राहुल सांकृत्यायन:- सिद्ध सामंत युग, उनके अनुसार 8वीं से 13 वीं शताब्दी के काव्य में दो प्रवृत्तियां प्रमुख हैं- 1.सिद्धों की वाणी- इसके अंतर्गत बौद्ध तथा नाथ-सिद्धों की तथा जैन मुनियों की उपदेशमूलक तथा हठयोग से संबंधित रचनाएँ हैं। 2.सामंतों की स्तृति- इसके अंतर्गत चारण कवियों के चरित काव्य (रासो ग्रंथ) आते हैं।
  • चंद्रधर शर्मा गुलेरी:- गुलारी जी ने अपभ्रंश और पुरानी हिंदी को एक ही माना है तथा भाषा की दृष्टि से अपभ्रंश का समय होने का कारण उन्होने इसे “अपभ्रंश काल” का संज्ञा दी है।

निष्कर्ष:-

हिंदी साहित्य के प्रथम सोपान का नामकरण या कहें कि आदिकाल के नामकरण की समस्या पर अनेक विद्वानों ने अलग-अलग तर्कों व साक्ष्यों के आधार पर अपने-अपने मतानुसार किया है। जैसा कि उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अधिकांश विद्वान कोई सर्वमान्य नाम नहीं दे सके। वविश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इस काल को ‘वीर काल’ कहा जो शुक्ल जी द्वारा प्रदत्त नाम का ही संक्षिप्त और सारगर्भित रूप है। काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित “हिन्दी साहित्य का बृहद इतिहास” में अनेक ऊहापोह के बाद ‘वीरगाथा काल’ नाम को ही उचित माना गया। अत: जब तक कोई निर्विवादित रूप से स्वीकार्य और प्रचलित नाम नहीं आता तब तक ‘वीरगाथा काल’ को ही मानना समीचीन होगा।

2016-11-15

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आज का युग तकनीक का है, जिसे हम "टेक्नोयुग" भी कह सकते हैं, इसलिए आपने देखा होगा कि आज-कल हम प्रत्येक काम में टेक्नोलॉजी का भरपूर प्रयोग करते हैं। उदाहरण के तौर पर अब कोई भी पहले जैसा 25 पैसों वाला पोस्ट कार्ड या 75 पैसों वाला अंतर्देशीय पत्र खरीद कर चिट्ठियां लिखना पसंद नहीं करता है। इसकी बजाय हम मोबाइल पर एसएमएस या ई-मेल टाइप कर चुटकियों में अपना काम निपटाने में माहिर हो गए हैं। बच्चे भी आज-कल अपनी पढ़ाई ई-लर्निंग और ई-क्लासेस के माध्यम से पूरी करने लगे हैं। कुल मिला कर देखें तो हम अब टेक्निकली स्मार्ट बन गए है या स्मार्ट बनने के लिए कुछ-कुछ इस रास्ते पर चल पड़े हैं। खास बात ये है कि इन सब में हमारी नई पीढ़ी हमसे अधिक तेजी से दौड़ रही है।


आइए अब इसी तकनीक को थोड़ा भाषा के साथ जोड़कर भी देखते हैं। आज कल हम सभी कंप्यूटर पर आसानी से टाइपिंग कर लेते है, जैसे ई मेल भेजना, फेसबुक स्टेटस अपडेट करना या चैटिंग करना आदि। मुझे याद है जब सबसे पहले मैंने कंप्यूटर पर अपना नाम टाइप करके देखा था तब मैंने अंग्रेजी में ही किया था। क्योंकि, हिंदी या मराठी में यह सुविधा उपलब्ध होगी ही नहीं यह मानकर हमने कंप्यूटर और मोबाइल पर अंग्रेजी की-बोर्ड को देखकर अंग्रेजी में ही काम करना शुरू किया था। लेकिन जैसे-जैसे आगे बढ़ते गए वैसे-वैसे तकनीकी की नई-नई बातें पता चलती गईं। वर्ष 2007 में जब मैंने खादी और ग्रामोद्योग के चंडीगढ़ स्थित कार्यालय में कनिष्ठ हिंदी अनुवादक के रूप में काम करना शुरू किया तब सबसे पहले मैंने हिंदी में कंप्यूटर पर काम करना आरम्भ किया। आगे जब मुंबई के मुख्यालय में मेरा स्थानांतरण हुआ तब वर्ष 2010 में सबसे पहले यह पता चला की हिंदी (देवनागरी) के फॉन्ट दो प्रकार के होते हैं- यूनिकोड फॉन्ट और नॉन-यूनिकोड फॉन्ट। इसके बाद मुझे "माइक्रोसॉफ्ट इंडिक लैग्वेज इनपुट टूल" के बारे में पता चला जो विंडोज एक्सपी और वि‍डोंज-7 पर चलता था। बाद में बैंक में पोस्टिंग मिलने पर कंप्यूटर पर अनिवार्य तौर से यूनिकोड में काम करना शुरू किया। इसके बाद कंप्यूटर पर हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में काम कैसे करें, इसपर मुझे अधिक जानकारी मिलनी शुरू हुई। माइक्रोसॉफ्ट इंडिक लैंग्वेज इनपुट टूल की सहायता से कोई भी व्यक्ति हिंदी या अन्य भारतीय भाषओं में आसानी से काम कर सकता है। यह टूल सभी एप्लिकेशनों पर सफलता पूर्वक कार्य करता हैं, और अंग्रेजी कीबोर्ड ले-आउट होने के कारण प्रयोग करने में भी सरल है। इसके बाद गूगल हिंदी इनपुट जो अंग्रेजी कीबोर्ड की सहायता से चलता हैं, के बारे में पता चला। फिर इनस्‍क्रिप्ट और बाराह आदि की जानकारी से कंप्यूटर पर हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में उपलब्ध विविध तकनीकी सुविधाओं के बारे में पता चला।


हिंदी भाषा की वि‍शेषता यह हैं कि यह एक सर्वसमावेशी भाषा हैं, इसमें संस्‍कृत से लेकर भारत की प्रांतीय भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी जैसी वि‍देशी भाषाओं के शब्‍दों को भी अपने अंदर समाहित करने की क्षमता है। तकनीकी के इस युग में हिंदी ने भी अपने परंपरागत स्वरूप को समय के अनुरूप ढाल लि‍या है। कंप्‍यूटर के साथ हिंदी भाषा ने अब चोली-दामन का साथ बना लि‍या है। आज तकनीक के प्रत्‍येक क्षेत्र में हिंदी को अपनाना आसान हो गया हैं। टाइपिंग की सुवि‍धा से लेकर वॉइस टाइपिंग की सभी सुवि‍धाऐं आज उपलब्‍ध है। आवश्‍यकता केवल हिंदी भाषा के उपयोगकर्ताओं द्वारा इन नवीनतम तकनीकी सुविधाओं को अपनाने भर की है। ओसीआर अर्थात ऑप्‍टीकल कैरेक्‍टर रिकग्नीशन अर्थात प्रकाश पुंज द्वारा वर्णों की पहचान कर पूराने देवनागरी हिंदी टेक्‍स को युनि‍कोड फॉंन्‍ट में परि‍वर्ति‍त करने की सुवि‍धा से पूरानी कि‍ताबों का डि‍जीटलाइजेशन करने में मदद मिल रही है। इससे संस्‍कृत भाषा में लि‍खे गये लेख सामग्री को आसानी से हिंदी के युनि‍कोड फॉन्‍ट में परि‍वर्ति‍त कि‍या जा सकता हैं। इस तकनीकी से पूराने शास्‍त्र, ग्रंथों के डि‍जीटलाइजेशन से ज्ञान के नए डिजिटल स्रोत खुल रहे हैं। प्राचीन ग्रंथों की दूर्लभ प्रति‍यों का डि‍जीटलाइजेशन करने से उनमें उपलब्‍ध ज्ञान का फायदा सभी को होगा।
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यह लेख भारतीय स्‍टेट बैंक,नाशिक में प्रबंधक (राजभाषा) के पद कार्यरत श्री राहुल खटे || RAHUL KHATE जी द्वारा लिखा गया है। आप श्री राहुल खटे से उनके Facebook वाल या उनकी वेबसाइट www.rahulkhate.online के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं।

नोट: आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। Hindi e-Tools || हिंदी ई-टूल्स का इनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है।